भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज रहे गौतम गंभीर बचपन से ही सेना में जाना चाहते थे। उनका पहला प्यार सेना में केरियर बनाना था पर भाग्य ने उन्हें क्रिकेटर बना दिया। सफल क्रिकेटर बनने के बावजूद गंभीर का सेना के प्रति लगाव कम नहीं हुआ है और इस पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज ने कहा कि शहीदों के बच्चों की मदद करने वाले एक फाउंडेशन के जरिए उन्होंने इस प्रेम को बनाये रखा है। भारत को 2 विश्व कप 2007 में विश्व टी20 और 2011 में एकदिवसीय विश्व कप में खिताब दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले गंभीर ने एक किताब के विमोचन के दौरान सेना के प्रति अपने जुनून को लेकर यह बात कही है। गंभीर ने कहा, 'नियति को यही मंजूर था और अगर मैं 12वीं की पढ़ाई करते हुए रणजी ट्रॉफी में नहीं खेला होता तो मैं निश्चित तौर पर एनडीए में जाता क्योंकि वह मेरा पहला प्यार था और यह अब भी मेरा पहला प्यार है। असल में मुझे जिंदगी में केवल यही खेद है कि मैं सेना में नहीं जा पाया।' उन्होंने कहा, 'इसलिए जब मैं क्रिकेट में आया तो मैंने फैसला किया मैं अपने पहले प्यार के प्रति कुछ योगदान दूं। मैंने इस फाउंडेशन की शुरुआत की जो कि शहीदों के बच्चों का ख्याल रखती है।' गंभीर ने कहा कि आने वाले समय में वह अपने फाउंडेशन को विस्तार देंगे। उन्होंने कहा, 'हम अभी 50 बच्चों को प्रायोजित कर रहे हैं। हम यह संख्या बढ़ाकर 100 करने वाले हैं।'