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(चिंतन-मनन) सेवाभाव ही सर्वोपरि 

(चिंतन-मनन) सेवाभाव ही सर्वोपरि 

एकनाथ देवगढ़ राज्य के दीवान जनार्दन स्वामी के शिष्य। एक बार गुरू देव ने एकनाथ को राजदरबार का हिसाब करने को कहा। एकनाथ बहि-खाता लेकर हिसाब करने बैठ गये। दूसरे ही दिन सुबह हिसाब राजदरबार में देना था। सारा दिन हिसाब लिखने और करने में बीत गया। दिन में बैठे कब रात हो गयी उन्हें पता ही न चला। सेवक दीपक जलाकर चला गया। हिसाब में एक पायी की भूल आ रही था। आधी रात बीत गयी मगर भूल पकड़ में ही नहीं आ रही थी। संत जी हिसाब में खोये रहे। भोर फटते ही गुरू देव एकनाथ के कमरे में आए तो सेत जी को हिसाब में खोये पाया।  
बहियों पर अंधेरा होने पर भी एकनाथ  हिसाब में  लगे रहे। इतने में एक पायी की भूल पकड़  में आ गयी। एकनाथ खुशी से चिल्ला पड़े,मिल गयी,मिल गयी। गुरू देव ने पूछा,क्या मिल गया बेटा? एकनाथ विस्मय से बोले कि हिसाब में एक पायी की भूल पकड़ में नहीं आ रही थी वह  मिल गयी है। लाखों के हिसाब में एक पायी की भूल के लिए रात भर का जागरण। गुरू देव की सेवा में इतनी लगन और दृढ़ निश्चय देखकर गुरू देव के दिल से गुरूकृपा बह निकली क्योंकि उन्हें ज्ञानामृत की वर्षा करने के लिए योग्य अधिकारी जो मिल गया था।  
 

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