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कैप्टन अमरिंदर और अकाली दल आएंगे भाजपा के साथ

कैप्टन अमरिंदर और अकाली दल आएंगे भाजपा के साथ

नई दिल्ली । किसान आंदोलन के ठीक एक साल पूरा होने से करीब एक सप्ताह पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। इससे एक तरफ किसान आंदोलनकारियों की घर वापसी का रास्ता साफ हुआ है तो वहीं सियासी समीकरण भी पूरी तरह से बदलते दिख रहे हैं। खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा की मुश्किलें कम होंगी और दूसरे दलों को अपनी रणनीति नए सिरे से तय करनी होगी। इनमें से भी पंजाब और यूपी में अगले ही साल की शुरुआत में चुनाव होने वाले हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन ने 2014, 2017 और फिर 2019 में पश्चिम यूपी में बड़ी बढ़त कायम करने वाली भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया था। इसी दौरान समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी की पार्टी रालोद से गठबंधन कर इस माहौल का फायदा उठाने की रणनीति बनाई थी। जाट, मुस्लिम, यादव समेत कुछ अन्य बिरादरियों के वोट का फायदा मिलने की सपा और रालोद को उम्मीद थी, लेकिन अब सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं। पश्चिम यूपी में भाजपा एक बार फिर से पहले की तरह ही आक्रामक होकर प्रचार कर सकती है। पंजाब के कई शहरों से ऐसी घटनाएं भी देखने को मिली थीं, जब भाजपा के नेताओं को किसान आंदोलनकारियों ने बंधक बना लिया और बमुश्किल पुलिस फोर्स के जरिए वे बाहर निकल सके। माहौल भाजपा के इतना खिलाफ था कि कांग्रेस छोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह भी उससे जुड़े नहीं बल्कि अलग पार्टी ही बनाई। यही नहीं अकाली दल ने भी इसी मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ा था। ऐसे में अब कृषि कानूनों की वापसी के बाद माहौल पूरी तरह अलग होगा और नए समीकरण बनेंगे। पूरी संभावना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा अकाली दल भी साथ आ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को भी बीते कुछ महीनों में बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा था। भाजपा नेताओं का विरोध यहां तक था कि उनके काफिलों पर हमले हो रहे थे और गांवों में एंट्री तक पर बैन लग गया था। भले ही नए कृषि कानून केंद्र सरकार लाई थी, लेकिन गुस्सा खट्टर सरकार भी झेल रही थी। ऐसे में अब कानून वापसी के बाद खट्टर सरकार को मदद मिलेगी। सहयोगी दल जननायक जनता पार्टी के नेता भी भाजपा के साथ को लेकर चिंतित थे क्योंकि उसका बड़ा जनाधार जाटों के बीच ही था, जिसे कृषक समुदाय माना जाता है। ऐसे में अब भाजपा हरियाणा में अपने आप को दोबारा मजबूत करने की स्थिति में होगी। इसके अलावा सहयोगी दलों को भी साध पाएगी।
 

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