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कृषि कानून वापसी और करतारपुर से भाजपा के लिए बनेगा पंजाब में सत्ता का कॉरिडोर

कृषि कानून वापसी और करतारपुर से भाजपा के लिए बनेगा पंजाब में सत्ता का कॉरिडोर


नई दिल्ली । पंजाब के भाजपा नेताओं की गृह मंत्री अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद केंद्र सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर खोलने का ऐलान किया था। इसके बाद भाजपा के नेता भी करतारपुर जाने वाले हैं। नानक जयंती से पहले कॉरिडोर खोलने और अब प्रकाश पर्व के मौके पर ही कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से पीएम नरेंद्र मोदी ने पंजाब के लिए बड़ा संदेश दिया है। अकाली दल के साथ 2017 तक पंजाब की सत्ता में रही भाजपा राज्य में बहुत बड़ी ताकत कभी नहीं रही है, लेकिन किसान आंदोलन के बाद से माहौल उसके बेहद खिलाफ हो गया था। यही वजह थी कि वक्त की नजाकत को समझते हुए अकाली दल ने उससे नाता ही तोड़ लिया था। अब करतारपुर कॉरिडोर खोलने और कृषि कानूनों की वापसी के बाद माहौल बदला दिख रहा है। एक तरफ कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा के करीब आते दिख रहे हैं तो वहीं अकाली दल भी साथ आ सकता है। कानून वापसी के ऐलान के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा के साथ जाने के संकेत भी दिए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कृषि कानून रद्द करने की घोषणा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया। अपने ट्वीट में इसे बड़ी खबर बताते हुए गुरू नानक जयंती के अवसर पर पंजाबवासियों की बात मानकर कृषि कानून रद्द करने को लेकर प्रधानमंत्री के प्रति आभार जताया। दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि वह पिछले एक साल से केंद्र से यह मामला उठा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह से अन्नदाताओं की आवाज सुनने का अनुरोध कर रहे थे। इसके अलावा एक और ट्वीट में पूर्व मुख्यमंत्री ने किसानों के विकास के लिए भविष्य में भाजपा के साथ मिलकर काम करने की आशा जताई है। उन्होंने कहा कि मैं पंजाबवासियों से वादा करता हूं कि मैं तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक हर आंख का हर आंसू नहीं पोंछ देता। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाने की घोषणा की थी और वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का इरादा जाहिर कर चुके हैं। अब कृषि कानूनों की वापसी से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा के लिए अमरिंदर सिंह विधानसभा चुनाव में कैप्टन की भूमिका अदा कर सकते हैं। हालांकि अभी यह साफ होना बाकी है कि वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़े करेंगे या फिर भाजपा में ही शामिल होकर चुनाव लड़ेंगे। कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ने वाला अकाली दल एक बार फिर से एनडीए का हिस्सा बन सकता है। करतारपुर कॉरिडोर खुलकर सिखों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने और कृषि कानूनों की वापसी से किसानों को साधने के भाजपा के दांव से उसके पास इसका मौका है। यूं भी अकाली दल मौजूदा स्थितियों में बहुत प्रभावशाली नहीं दिख रहा है। ऐसे में वह भाजपा और कैप्टन अमरिंदर के साथ मिलकर चुनावी समर में उतर सकता है। हालांकि अब भी अकाली दल की ओर से इस बात का इंतजार हो सकता है कि केंद्र के इन दो फैसलों का पंजाब में क्या असर है और लोग अब क्या सोचते हैं।
 

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