नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल बनाए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री का यह फैसला यूपी और पंजाब सहित पांच राज्यों में निकट भविष्य में होने वाले चुनावों के मद्देनजर लिया गया है। वेस्ट यूपी में भी कृषि कानूनों के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन चल रहा था। तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी की हिंसा में चार किसानों के मारे जाने के बाद इसमें और गर्माहट आ गई थी। यह तय माना जा रहा था कि अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा अह्म होगा। लेकिन कृषि कानूनों की वापसी के पीएम के ऐलान के बाद यह माना जा रहा है कि इसका असर वेस्ट यूपी के राजनीतिक समीकरणों पर भी जरूर पड़ेगा। विपक्षी दल वेस्ट यूपी में जहां अब तक किसान आंदोलन से बड़ी उम्मीद लगाए बैठे थे, वहीं अब यह मुद्दा ही खत्म गया है। जाहिर है इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विपक्ष के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। लिहाजा, अब उन्हें नए सिरे से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। किसान, इन कृषि कानूनों को लेकर सरकार से खासे नाराज थे। भाजपा के रणनीतिकारों को साफ लग रहा था कि इस नाराजगी का असर 2022 में पश्चिमी यूपी के 16 जिलों की 136 सीटों के गणित पर पड़ सकता है। 2017 में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 109 सीटों पर कब्जा किया था। अलग-अलग जिलों की बात करें तो बीजेपी मेरठ की सात सीट में से छह सीटों पर जीती थी। एक सीट सपा के खाते में गई थी। बागपत में एक सीट पर बीजेपी हारी थी लेकिन इस सीट पर रालोद के टिकट पर जीते विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। सहारनपुर की सात में चार सीटें बीजेपी जीती थी। तीन पर उसे हार मिली थी। एक सीट सपा और दो कांग्रेस ने जीती थीं। मुरादाबाद में छह में से दो सीटें बीजेपी ने जीती थीं। अन्य चारों सीटों पर सपा जीती थी। अमरोहा की चार सीटों में से तीन बीजेपी जीती थी एक पर पर सपा जीती थी। फिरोजाबाद में चार में से तीन पर बीजेपी जीती थी। एक सीट सपा के खाते में गई थी। मैनपुरी में चार में से एक सीट बीजेपी और एक सीट सपा ने जीती थी। बदायूं में छह में से पांच सीटों पर बीजेपी जीती थी। एक पर सपा जीती थी। संभल में चार में से दो बीजेपी और दो पर सपा जीती थी। बिजनौर में आठ में से छह सीटें बीजेपी ने जीती थीं। दो पर सपा जीती थी। रामपुर में पांच में से दो सीटें बीजेपी और एक सीट पर सपा जीती थीं। शामली में तीन में से दो सीटें बीजेपी ने जीती थी। एक पर सपा जीती थी। हापुड़ में तीन में से दो सीटें बीजेपी ने जीती थीं। एक पर बीएसपी को जीत मिली थी। शाहजहांपुर में छह में से पांच सीटों पर बीजेपी जीती थी। एक सीट सपा के खाते में गई थी। मथुरा में पांच में से चार सीटों पर बीजेपी जीती थी एक पर बीएसपी को जीत मिली थी। इसी तरह हाथरस में तीन में से दो सीटें बीजेपी ने जीती थीं। एक पर बीएसपी को जीत मिली थी। 16 जिलों में कुल 27 सीटें बीजेपी हार गई थी। इस चुनाव में बीजेपी ने 27 हारी सीटों पर अलग से फोकस करना शुरू किया था लेकिन किसानों की नाराजगी के चलते पूरे वेस्ट यूपी में नुकसान की आशंका भी थी। उधर, वेस्ट यूपी से आने वाले मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जिस बेबाकी से मीडिया में कृषि कानूनों के खिलाफ अपने विचार रखे और उस पर पार्टी नेतृत्व और केंद्र सरकार ने चुप्पी साधे रखी उससे लगने लगा था कि कहीं न कहीं उनके विचारों को पार्टी में भी एक हद तक स्वीकार किया जा रहा है। जानकारों की मानें तो पिछले कई महीनों से बीजेपी में कृषि कानूनों की वापसी पर गंभीरता से विचार चल रहा था। वापसी के अलावा किसानों की नारजागी दूर करने के अन्य उपायों पर भी काफी विचार किया गया लेकिन आंदोलन पर डटे किसानों के रुख को देखते हुए साफ हो गया कि किसान, कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उधर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के बीच चल रही गठजोड़ की बातों पर भी पार्टी की नज़र थी। जानकारों का कहना है कि यदि किसान, जाट और चौधरी चरण सिंह की विरासत पर राजनीति करने वाली रालोद सपा से हाथ मिलाती है तो पश्चिमी यूपी की 136 में से कई सीटों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है। मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर, हापुड़, शामली सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के समीकरणों में जरा भी उलटफेर किसी की जीत तो किसी की हार का सबब बन सकता है। इसी वजह से बीजेपी कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं थी।
रीजनल नार्थ
कृषि कानूनों की वापसी से वेस्ट यूपी में आसान होगी बीजेपी की राह