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जय श्रीराम का नारा जोर से लगाते हैं पर उनके जैसा बनना भी चाहिए: मोहन भागवत

जय श्रीराम का नारा जोर से लगाते हैं पर उनके जैसा बनना भी चाहिए: मोहन भागवत

नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि हम भगवान जय श्रीराम का जोर से नारा लगाते हैं, लेकिन उनके जैसा हमें बनना भी चाहिए। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा, 'हम बहुत जोर से जय श्री राम का नारा लगाते हैं और लगाना भी चाहिए। लेकिन हमें उनके जैसा बनना भी चाहिए। हम सोचते हैं कि वो तो भगवान थे। भरत जैसे भाई पर प्रेम करना तो भगवान ही कर सकते हैं, हम नहीं कर सकते। ऐसी सोच सामान्य आदमी की रहती है। इसलिए वे उस राह पर नहीं चल पाते।' उन्होंने कहा कि अपना स्वार्थ छोड़कर लोगों की भलाई करने का काम कठिन होता है। मोहन भागवत ने कहा कि परहित पर चलने की राह बताने वाले महापुरुषों की बड़ी संख्या हमारे यहां है। दुनिया में जितने महापुरुष अब तक हुए होंगे, उससे ज्यादा तो हमारे यहां 200 सालों में ही हुए हैं। उन्होंने हमें राह दिखाई है कि स्वार्थ को छोड़कर कैसे काम किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने यह भी दिखाया कि कितने कांटे इस मार्ग में है। इसलिए हम उस राह पर नहीं जा पाते। यही नहीं उन्होंने कहा कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में​ जितना आगे बढ़ना चाहिए था, हम उतना आगे नहीं बढ़े। देश को आगे ले जाने के रास्ते पर चलेंगे तो आगे बढ़ेंगे, उस रास्ते पर नहीं चले इसलिए आगे नहीं बढ़े। इसके साथ ही आरएसएस चीफ ने कहा कि यदि हम लोग पूरे मन से काम करें तो फिर देश को कोई ग्रोथ करने से रोक नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए हमें सभी को अपना भाई मानना होगा। उन्होंने कहा कि सेवा और जनकल्याण का काम सिर्फ नारों से नहीं होता है बल्कि इसके लिए पूरी चेतना के साथ जमीन पर काम करना होता है। दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित इवेंट में उन्होंने कहा कि देश के विकास में सेवा कार्यों का अहम योगदान है। उन्होंने कहा कि हम उस दिशा में बीते 75 सालों में आगे नहीं बढ़े है, जिससे देश का विकास होता। उन्होंने कहा, 'वेदों के समय से यह परंपरा रही है कि पूरा भारत आपका है। यदि हम इस विचार के साथ काम करें और इस जमीन पर पैदा हुए हर शख्स को अपना भाई और बहन मानें तो फिर हमें प्रगति से कोई नहीं रोक सकता। अब तक 75 साल बीत गए हैं, लेकिन हम अब भी यदि इस भावना से काम करें तो फिर 15 से 20 सालों में वह प्रगति हासिल कर सकेंगे, जो हमारा लक्ष्य है।' उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से हम उस गति से आगे नहीं बढ़े, जितनी तेजी से बढ़ना चाहिए था। लेकिन अपने अहंकार को यदि हम किनारे रखकर काम करें तो फिर लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।
 

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