सर्दी का मौसम धीरे धीरे समाप्त हो रहा है और गर्मी का मौसम प्रांरभ होने वाला है लेकिन मौसमी बिमारी ने भी अपना पैर पसारना प्रांरभ कर दिया है। जैसी चुभती धूप,बैचेन कर देने वाली उसम भरी गर्मी,शहर से गांव तक मच्छरों का प्रकोप ओर खानपान मे जरा सी चूक भी मौसमी बीमारियो की गिरफ्त मे धकेल रही है। एक ओर डेंगू,मलेरिया वायरल फीवर कहर बरपा रहा है तो दूसरी ओर सर्दी,जुकाम,सिरदर्द व गले मे खराश ने लेागो को बैचेन कर रखा है। इन तमाम दिक्कतों से निजात दिलाने के नाम पर सरकारी अस्पतालों मे कहने के लिए सभी सुविधाएं है। लेकिन यहां इलाज व बीमारी से ज्यादा बदइंतजामियों का दंश झेलना पड़ रहा है। नतीजन परेशान लोग निजी अस्पतालों मे महंगा इलाज कराने मजबूर है। जबकि ग्रामीण अस्पतालों मे वही झोलाछाप चांदी काट रहे है। गौरतलब है कि मौसम मे रह रह कर हो रहे बदलाव एंव बारिश के चलते मौसमी बीमारियों का कहर जारी है। अगस्त से अब तक बमुश्किल से दो तीन दिन ही नाममात्र की बारिश तो हुई लेकिन लोगो को ठंडक नही मिल रही। आलम यह है कि मौसमी बीमारियों से पीडि़त मरीज इलाज के लिए अस्पताल तो पहुंच रहे है। लेकिन भर्रेशाही वाले ढर्रे के चलते राहत नही मिल पा रही है।
मरीजों की लग रही लंबी कतारें
मौसमी बीमारियो से पीडि़तो की उपचार के लिए जिला चिकित्सालय सहित सभी सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रो मेे लंबी कतार लग रही है। चिकित्सको की सीमित संख्या के चलते घंटो इंतजार के बाद मरीज जब चिकित्सक के पास पहुंचता है तो चिकित्सक को इतनी भी फुर्सत नही होती कि वह मरीज की तकलीफ सुन व समझ सके। वैसे भी सरकारी अस्पतालों मे ३६ बीमारियों के लिए गिनी चुनी दवाईयां ही थमाई जा रही है। जिस मरीज को ठीक होना है वह इन्ही दवाईयों को खाकर रामभरोसे ही ठीक हो जाता है। वर्ना आराम नही मिलने पर निजी अस्पतालो की शरण मे जाना पड़ता है। जिला अस्पताल मे सबसे बड़ा रोना यह है कि चिकित्सक पहले मलेरिया या अन्य बीमारियों के संदेह मे जांच तेा लिख देते है लेकिन रिपोर्ट उसी दिन मिलना संभव न होने से अगले दिन फिर वही प्रक्रिया दोहरानी पढ़ती है। जबकि अस्पतालों मे आजकल साधारण वायरल फीवर के लक्षण होने पर भी एक साथ देा दो तीन तीन जांच कराने का ट्रैड चल पड़ा है। जिसमे बीमार का उपचार शुरू होने से पहले ही सैकड़ो रूपए फीस व उसके बाद जांच व दवा के पैसे चुकाने पड़ रहे है। जिस पर भी आराम न मिलने पर दूसरी बार फिर नए फार्मूले के साथ नया प्रयोग होता। जबकि सरकारी अस्पताओं मे बेहतर चिकित्सा व्यवस्था हो तेा निजी अस्पताओ के महंगे इलाज से बचा जा सकता है।
चल रहा जांच का खेल
आमतौर पर वायरल फीवर या मलेरिया मे भी मांसपेशियों मे दर्द या अकडऩ महसूस होना सिरदर्द रहना,कफ और कोल्ड,खांसी,बूखार रहना दवा खाते ही बुखार बढऩा,गले मे खराश और लगातार बढ़ते जाने के अलावा छींक या नाक जाम की समस्या होती है। इन लक्षणो को निजी डाक्टरो के समक्ष बताते ही पहले ही अंधाधुंध कमाई व कमीशन का मूड बनाकर बैठे डाक्टर इसे स्वाईन लू के लक्षण बताकर मरीज या उनके साथ आए परिजनो को डरा देते है। फिर तमाम तरह की जांचो का खेल होता है। जांच रिपोर्ट आते ही यह कहकर तसल्ली दी जाती है कि आप लकी है जो बच गए। इसके बाद शुरू होता है कि महंगी दवा लिखन का खेल जिसमें गैरजरूरी पाउडर या महंगा सीरप भी लिख दिया जाता है। वही दूसरी ओर जिला चिकित्सालय या अन्य सरकारी अस्पतालों मे भी स्वंय उसी चै बर मे बैठक स्वंय के निजी क्लीनिक या अन्य कमीशन व निजी अस्पतालों मे मरीजों को भेजा जाता है। जिससे तगड़ी कमाई हो जाती है।
नेशन
बीमारियों से अटा पड़ा अस्पताल, चिकित्सकों की सेवांए खस्ताहाल