एक दशक से भी कम समय हुआ है मुझे ईश्वरीय ज्ञान से जुड़े हुए।जब तक मेरे लौकिक माता पिता रहे तब तक मुझे ब्रह्माकुमारीज संस्था के बारे में कोई जानकारी नही थी।लेकिन जब मेरी लौकिक मां प्रकाशवती ने सन 2012 में 13 फ़रवरी को इस दुनिया से विदाई ली तो मां के प्रति बेहद के लगाव ने मुझे बीमार बना दिया था।बहुत से डॉक्टरों को दिखाया लेकिन कोई ज्यादा लाभ नही हुआ ,उल्टे कुछ डॉक्टर गम्भीर बीमारी की आशंका दर्शाकर डराने भी लगे थे।इसी बीच ब्रह्माकुमारीज के रुड़की सेवा केंद्र पर बीके तारा दीदी के माध्यम से मेरा जुड़ाव व परिचय प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से हुआ।हालांकि संस्था सबसे पहले जो भी संस्था से जुड़ता है ,उन्हें सात दिन का राजयोग पाठ्यक्रम कराती है,लेकिन मुझे बिना पाठ्यक्रम व संस्था की समुचित जानकारी दिए बिना ही केंद्र इंचार्ज बीके विमला दीदी ने माउंट आबू में हो रहे नेशनल मीडिया कांफ्रेंस में भेज दिया।मेरे साथ मेरी युगल सुनीता जिन्होंने राजयोग का सात दिवसीय पाठ्यक्रम पूरा कर लिया था,भी गई।वही मेरे पत्रकार साथी एसएस सैनी व उनकी युगल सुनीता सैनी जो अब इस दुनिया मे नही है ,भी साथ मे गए थे,लेकिन मैं उक्त पाठ्यक्रम से अनजान ही रहा।वही उन्होंने हमारे साथ कोई गाईड भी नही भेजा।जब हम मीडिया कांफ्रेंस में सफलता पूर्वक भाग लेकर लौटे तो हमने अपना अनुभव मुरली क्लास ,जो ब्रह्माकुमारीज की नियमित ईश्वरीय पढाई है,में सुनाया।अनुभव सुनकर विमला दीदी बहुत खुश हुई और हमसे बोली, अब आप परमात्मा शिव बाबा के बच्चे बन गए हो ,बाबा ने आपका हाथ पकड़ लिया है,इस हाथ को कभी मत छुड़ाना।तब से ही मैं मुरली क्लास में जाने लगा।कभी कभी विमला दीदी स्वयं भी मुरली सुनाती थी,लेकिन ज्यादातर क्लास में सबसे पीछे बैठकर कौन आया है,कौन नही आया,नही आया तो क्यो नही आया?यह सब ध्यान रखती थी।कोई भाई या बहन तीन चार दिन क्लास में न आए तो उन्हें फोन कराकर क्लास में न आने का कारण पता करवाती थी।विमला दीदी हर भाई बहन के दुःख सुख की ऐसी साथी थी कि सब उनके सामने अपने मन की बात कह देते थे।विमला दीदी सबको एक बड़ी बहन और एक मां की तरह पालना देती थी।कभी क्लास में और कभी कभी मुझे व्यक्तिगत रूप में भी शिव बाबा व ब्रह्माबाबा से जुड़े अपने अनुभव सुनाती थी।विमला दीदी जब मुझे गोपाल भाई कहकर पुकारती तो लगता था मेरी दूसरी रूहानी मां मुझसे बतिया रही है।वह ईश्वरीय सेवा में कैसे समर्पित हुई यह किस्सा उन्होंने कई बार सुनाया।वे बताया करती कि वे पहली बार जब माउंट आबू व्यक्त ब्रह्माबाबा के सामने गई तो उन्हें आबू रोड से बैलगाड़ी में बैठकर माउंट आबू जाना पड़ा था।कई भाई बहन तो उस समय पैदल ही आबू रोड़ से माउंट आबू आते जाते थे।26 किमी के इस पहाड़ी व बहुत ऊंचाई के रास्ते मे आने जाने के साधन कम ही थे और पांडव भवन यानि ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय भी ज्यादा बड़ा नही था।ब्रह्माबाबा सभी भाई बहनों का भरपूर खयाल रखते थे।वे सबसे बाद में सोते थे और सबसे पहले उठ जाते थे।विमला दीदी को बाबा जब बच्ची कहकर बुलाते तो वे खुशी के मारे झूम उठती। ब्रह्माकुमारी विमला दीदी का जीवन राजयोग की जीती-जागती मिसाल रहा। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से खुद को इतना परिपक्व, शक्तिशाली, महान और आदर्शवान बना लिया था कि उनका एक-एक वाक्य महावाक्य हो जाता था।उन्होंने योग से मन इतना संयमित, पवित्र, शुद्ध और सकारात्मक बना लिया था कि वह जिस समय चाहें, जिस विचार या संकल्प पर और जितनी देर चाहें, स्थिर रह सकती थी।विमला दीदी बताती थी कि राजयोगी वही है जिसके बोल सदा मीठे रहे, जिसे परमात्मा से प्यार हो और जीवन में जिनके दिव्य गुण हों।वे भगवान को साथी बनाने की प्रेरणा देती थी। उनका मानना था कि अपने आपको ईश्वरीय सेवा के प्रति समर्पित कर दो सब समस्याएं स्वतः खत्म हो जाएंगी।वे कहती थी कि कुछ भी हो जाए इंसान को अपनी सच्चाई नहीं छोड़ना चाहिए। उनका कहना था कि ईश्वर की मदद, साथ और उसे अपना बना लेना ही जीवन सफल करना है। जितना हो ,उतना साइलेंस का अभ्यास बढ़ाओ, क्योंकि साइलेंस की पावर सबसे बड़ी पॉवर होती है।ऐसी सबकी स्नेही, तपस्वी, शिव बाबा के सानीदय में ब्रह्माबाबा के कमल हस्तो से पली, रुड़की सेवाकेन्द्र की संचालिका बीके विमला दीदी ने गत 23 नवम्बर को दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर अपना पुराना शरीर त्यागकर ईश्वरीय गोद ली है | उनका अन्तिम संस्कार 24 नवम्बर को उनकी देह को भव्य रथ में सजाकर रुड़की शहर की परिक्रमा के बाद, मालवीय चौक रुड़की मे ईश्वरीय विधि विधान के साथ किया गया |देहरादून सेवा केंद्र प्रभारी बीके मंजू दीदी ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनकी शारीरिक आयु 84 वर्ष की थी |उन्होंने लगभग 60 वर्षों से अधिक समय तक ईश्वरीय सेवा की। विमला दीदी ने देहरादून, नाहन, डाकपत्थर, ऋषिकेश, हरिद्वार,अम्बाला, पटियाला, बरेली, लखनऊ आदि अनेक सेवाकेन्द्रों पर अपनी सेवाए दी | वे लगभग 40 वर्षों से रुड़की सेवाकेन्द्र पर वे अपनी सेवाए दे रही थी | उन्होंने अपनी बीमारी पर हर बार विजय पाई ,यहां तक की कोरोना को भी हराया।लेकिन अंततः जहां सबको जाना ही है वहां के लिए उनका बुलावा भी आ गया और वे बिना किसी कष्ट के सहज रूप से देह त्याग कर परमधाम के लिए प्रस्थान कर गई।राजयोग की वरिष्ठ शिक्षिका बीके विमला दीदी का जीवन सदैव रूहानियत में रहा, वे देह अभिमान से सदा दूर रही और सबको चरित्र निर्माण की सीख देती रही।ऐसी हम सबकी प्यारी विमला दीदी को शत शत नमन।
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)
आर्टिकल
ब्रह्माकुमारी विमला दीदी जिनका था ईश्वर से सीधा नाता !