नई दिल्ली । जातीय समीकरणों को साधने के लिए समाजवादी पार्टी गठबंधन का दायरा तो काफी बढ़ा रही है लेकिन सभी सहयोगियों को संतुष्ट करते हुए सीट बंटवारा बड़ी चुनौती है। एक ओर पार्टी को अपने यहां के दावेदारों को मनाए रखना है तो दूसरी ओर सहयोगी दलों की महत्वकांक्षाओं को देखना है। सपा के गठबंधन में छह दल आ चुके हैं, और तीन चार और आने की तैयारी में हैं। इनकी सीटों की मांग तो सौ से भी ज्यादा है, लेकिन माना जा रहा है कि सपा मौजूदा सहयोगियों के लिए 50 से 60 सीटें छोड सकती है। लेकिन अगर नए सहयोगियों के साथ आगे गठजोड़ होता है तो यह संख्या और काफी बढ़ जाएगी। सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की ओर से बीस सीटों की मांग हो रही है। राजभर वोटों पर दावा करने वाली पार्टी को सपा 10 से 12 सीटें दे सकती है। महान दल ,एनसीपी व जनवादी पार्टी सोशलिस्ट यह दल काफी समय से सपा के साथ हैं लेकिन इनका सीमित असर को देखते हुए इन्हें 8 सीटें मिल सकती हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी दो तीन सीट पा सकती है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने सबसे ताकतवर सहयोगी रालोद को 30-36 सीटें देने पर सहमति जताई है। आम आदमी पार्टी भी सपा से गठबंधन को इच्छुक दिखती है, लेकिन उसकी ओर से महानगरों की 50 सीटों दिए जाने की बात कही जा रही है। अगर गठबंधन पर बात बनी तो सपा शहरों की अपनी कुछ कमजोर सीटें उन्हें दे सकती है। अखिलेश यादव से से गठबंधन को तैयार आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) दस से ज्यादा सीटें चाहती है। पश्चिमी यूपी में यह पार्टी युवा दलितों में पैठ बना रही है। सपा की रणनीति इसके जरिए बसपा के वोटबैंक सेंध लगाने की है। इसके अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने संकेत दिया है कि उनकी ताकत के हिसाब से सीटें मिलनी चाहिए। उन्होंने तो दो दिसंबर तक गठबंधन को लेकर स्थिति साफ हो जाने की बात कही है। तृणमूल कांग्रेस से भी सपा का समझौता हो सकता है। इनके लिए सपा को दो तीन सीटें छोड़नी पड़ सकती हैं। सबसे ज्यादा मांग तो प्रसपा (लोहिया) अध्यक्ष शिवपाल यादव की ओर से आई है। उन्होंने तो सौ सीटें मांगते हुए यहां तक कहा है कि इसमें वह पचास जीत कर लाएंगे। इसे लेकर सपा व प्रसपा के बीच गठबंधन नहीं हो पा रही है। हालांकि जबकि सपा दस के अंदर ही सीटें प्रसपा को दे सकती है। गठबंधन न होने की सूरत में शिवपाल ने किसी राष्ट्रीय पार्टी से भी गठबंधन का संकेत किया है।
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गठबंधन का दायरा बढ़ना अखिलेश यादव के लिए चुनौती