YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

(चिंतन-मनन) गुरु का पाठ 

(चिंतन-मनन) गुरु का पाठ 

गंगा के किनारे बने एक आश्रम में महर्षि मुद्गल अपने अनेक शिष्यों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। उन दिनों वहां मात्र दो शिष्य अध्ययन कर रहे थे। दोनों काफी परिश्रमी थे। वे गुरु का बहुत आदर करते थे। महर्षि उनके प्रति समान रूप से स्नेह रखते थे। आखिर वह समय भी आया, जब दोनों अपने-अपने विषय के पारंगत विद्वान बन गए। मगर इस कारण दोनों में अहंकार आ गया। वे स्वयं को एक-दूसरे से श्रेष्ठ समझने लगे। एक दिन महर्षि स्नान कर पहुंचे तो देखा कि अभी आश्रम की सफाई भी नहीं हुई है और दोनों शिष्य सोकर भी नहीं उठे हैं। उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं होता था। महर्षि ने जब दोनों को जगाकर सफाई करने को कहा तो दोनों एक-दूसरे को सफाई का आदेश देने लगे। एक बोला-मैं पूर्ण विद्वान हूं। सफाई करना मेरा काम नहीं है। इस पर दूसरे ने जवाब दिया-मैं अपने विषय का विशेषज्ञ हूं। मुझे भी यह सब शोभा नहीं देता। महर्षि दोनों की बातें सुन रहे थे। उन्होंने कहा- ठीक कह रहे हो तुम लोग। तुम दोनों बहुत बड़े विद्वान हो और श्रेष्ठ भी। यह कार्य तुम दोनों के लिए उचित नहीं है। यह कार्य मेरे लिए ही ठीक है। उन्होंने झाड़ू उठाया और सफाई करने लगे। यह देखते ही दोनों शिष्य मारे शर्म के पानी-पानी हो गए। गुरु की विनम्रता के आगे उनका अहंकार पिघल गया। उनमें से एक ने आकर गुरु से झाड़ू ले लिया और दूसरा भी उसके साथ सफाई के काम में जुट गया। उस दिन से उनका व्यवहार पूरी तरह बदल गया।  
 

Related Posts