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(चिंतन-मनन) अनुभव का लाभ 

(चिंतन-मनन) अनुभव का लाभ 

एक विदेशी राजा ने भारत पर आप्रमण करना चाहा। उसने सोचा कि आप्रमण से पूर्व यह जान लेना चाहिए कि उस राजा के पास कोई बुद्धिमान व्यक्ति है या नहीं? उस  राजा ने सुरमे की एक डिबिया देकर एक दूत भेजा। उस डिबिया में दो आंखों में ही लगाने लायक सुरमा था। वह सुरमा अंधे को आंख देने में समर्थ था। दूत आया। दूत ने कहा, 'दो आंखों में ही आ जाए, इस डिबिया में इतना-सा सुरमा है। हमें इसकी अधिक आवश्यकता है। आपके पास हो तो हमें दें। या इस सुरमे के आधार पर कोई व्यक्ति ऍसा ही सुरमा बना सके तो हम उस आदमी को अपने साथ ले जाना चाहेंगे।'  
राजा ने मंत्रियों से सलाह ली। किन्तु ऍसा सुरमा कौन बना सके? किसी को समाधान नहीं आया। राजा ने सोचा, एक बूढ़ा मंत्री था, जो अभी सेवानिवृत्त हुआ है, उससे पूछा जाए। राजा ने उसे बुला भेजा। वह अंधा हो गया था। वह आया। मंत्री ने डिबिया ली। एक आंख में सुरमा लगाया। कुछ ही क्षणों बाद उसे दिखने लगा। जो शेष सुरमा बचा था, उसे अपनी जीभ पर रख लिया। स्वाद से उसने सुरमे के सारे द्रव्यों का विश्लेषण कर लिया। घर जाकर वैसा ही सुरमा बनाया। परीक्षण के लिए अपनी दूसरी आंख में उसे लगाया। आंख खुल गई। उसने शेष सुरमा डिबिया में भरकर दूत से कहा, 'जाओ, अपने सम्राट से कहना कि ऍसा सुरमा जितना चाहे यहां से मंगा लें।' दूत गया। सम्राट को वृत्तान्त सुनाया। सम्राट ने सोचा, जिस देश में ऍसे अनुभवी और वृद्ध रहते हैं, इतने बुद्धिमान मंत्री हैं, उस देश पर आप्रमण करना भयंकर भूल होगी। 
 

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