नई दिल्ली । दक्षिण अफ्रीका में खतरनाक कोरोना वेरीयंट ओमिक्रॉन तक विशेषज्ञ कैसे पहुंचे। इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि थकान-सिरदर्द के मरीजों को देखने के बाद दक्षिण अफ्रीका के गौतेंग प्रांत की प्रयोगशाला में नवंबर की शुरुआत में कोविड-19 की जांच के दौरान कुछ अजीब सा मामला पकड़ में आना शुरू हुआ।
प्रयोगशाला वायरस के उस जीन को पकड़ नहीं पा रही थी जो स्पाइक प्रोटीन बनाता है ताकि रोगाणु मानव कोशिका में प्रवेश करके फैल सके। ठीक उसी दौरान दूसरी तरफ उस क्षेत्र के डॉक्टर एक अजीब वाकये से गुजर रहे थे, अचानक अस्पतालों में थकान औऱ सिरदर्द की शिकायत वाले मरीजों की बाढ़ सी आ गई थी। कुछ हफ्तों की शांति के बाद फिर से नए मामले सामने आने लगे जो डेल्टा वेरिएंट वाली तीसरी लहर की ओर इशारा कर रहे थे। जो जुलाई के महीने में जोहांसबर्ग औऱ राजधानी प्रिटोरिया के जरिए पहुंचा था।
इस घटनाक्रम ने देश में ओमिक्रॉन वेरिएंट के साथ नई लहर की शुरुआत कर दी थी। इस खतरनाक स्ट्रेन के साथ तेजी से मामले बढ़ रहे थे। 25 नवंबर को जब इस वेरिएंट के बारे में घोषणा की गई तो वैश्विक स्तर पर ऐसी चिंता की लहर दौड़ी कि बाज़ार औंधे मुंह गिर पड़ा। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों ने दक्षिण अफ्रीका से आने वाली उड़ानों पर पाबंदी लगा दी थी। इस खबर के लिखने तक यह म्यूटेशन 15 से ज्यादा देशों में पाया जा चुका था। जानकारी के मुताबिक 29 नवंबर को अपने साक्षात्कार में दक्षिण अफ्रीका मेडिकल रिसर्च काउंसिल की अध्यक्ष ग्लेंडा ग्रे ने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि गड़बड़ क्या है, इसलिए उन्होंने वायरोलॉजिस्ट को सचेत किया और उन्होंने सीक्वेंस के सैंपल लेना शुरू किया। सबसे पहले एक निजी प्रयोगशाला में लैंसेट के वैज्ञानिकों ने इसके सैंपल की पहचान की थी और चेतावनी जारी की थी।
लैंसेट की वैज्ञानिक एलिसिया वर्मेल्युन को इसका श्रेय जाता है, जिन्होंने 4 नवंबर को इसकी प्रारंभिक स्तर पर खोज की थी। जब उन्हें एक पॉजिटिव टेस्ट में कुछ असंगति मिली थी, उन्होंने यह बात अपने मैनेजर को बताई और मामला सामने आया। आगे आने वाले हफ्तों में यही असंगति कई बार सामने आई। उसके बाद लैंसेट में मोल्युक्यूलर पैथोलॉजी और सरकार के मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य एल्लिसन ग्लास ने सूचना दी। इसके बाद लैंसेट और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज साथ में 22 नवंबर को इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि यह एक नया वेरिएंट है, जिसका नाम शुरुआत में बी.1.1.529 रखा गया था। इसका एस-जीन पकड़ में नहीं आ सका था, क्योंकि यह उत्परिवर्तित हो चुका था। उसी दौरान बोत्सवाना के वैज्ञानिकों की नजर में भी नवंबर की शुरुआत में बाहर से आए यात्रियों की जांच के दौरान इस तरह की जानकारी सामने आई। यही बात दक्षिण अफ्रीका से हांगकांग लौटे एक व्यक्ति में भी देखने को मिली, हालांकि वह व्यक्ति क्वारंटाइन था। इस डाटा को एक वैश्विक कोष जीआईएसएआईडी में अपलोड किया गया।
इसके बाद 24 नवंबर को यहां से डाटा लीक होने के बाद ब्रिटिश मीडिया ने इन नए वेरिएंट के बारे में खबरें देना शुरू कर दिया।दक्षिण अफ्रीका के स्वास्थ्य विभाग के कार्यवाहक महानिदेशक निकोलस क्रिस्प ने बताया कि उन्हें 24 नवंबर को सबसे पहले इसकी सूचना मिली। दूसरे अहम अधिकारियों को अगले दिन इसके बारे में जानकारी दी गई और फिर आनन फानन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई, जहां दक्षिण अफ्रीका में दो जीन सीक्वेंसिंग के प्रमुख तुलियो दि ओलिवियेरा ने इस खोज की घोषणा की। फिलहाल तो डॉक्टर ओमिक्रॉन को हल्के लक्षणों वाला बता रहे हैं, लेकिन अभी इसका असर अपेक्षाकृत युवा लोगों में हैं, इसलिए कुछ भी कहना मुश्किल है कि यह कितना घातक हो सकता है। ऐसा तब पता चलेगा जब इसका असर बुजुर्ग और कमजोर इम्युनिटी के लोगों में पहुंचेगा। इसलिए अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमिक्रॉन के जरिए मिल रहे गंभीर परिणामों और कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए सचेत किया है कि यह आगे और ज्यादा संक्रामक हो सकता है। ओमिक्रॉन की जानकारी सामने आते ही कई देशों ने दक्षिण अफ्रीका की उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस फैसले से दक्षिण अफ्रीकी सरकार और वहां के व्यापारी तबके में निराशा है।
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वैज्ञानिकों ने ऐसे पकड़ा खतरनाक वेरिएंट ओमिक्रॉन को -थकान-सिरदर्द के मरीजों की संख्या बढ रही थी लगातार