बिहार सरकार द्वारा एक्यूट इन्सफेलाइटिस सिंड्रोम (दिमागी बुखार) से पीड़ित परिवारों का सोशल ऑडिट कराया गया है। इससे स्पष्ट हो गया है कि ज्यादातर परिवार बेहद गरीबी में अपना जीवन गुजार रहे हैं। उनमें से अधिकतर परिवार मजदूरी करते हैं। सोशल ऑडिट की रिपोर्ट के अनुसार, दिमागी बुखार से पीड़ित चार में से तीन परिवार गरीबी की रेखा के नीचे (बीपीएल) निवास करते हैं।
इस सोशल आडिट में 287 परिवारों का सर्वे कराया गया है। सर्वे के अनुसार इन परिवारों के औसत सालाना आय 52,500 रुपए तक है। इसका मतलब यह है कि इन परिवारों में औसत माहवारी आय 4,465 रुपए है। 2011-2012 में जारी रंगराजन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण बिहार में औसत गरीबी रेखा 971 रुपए प्रति माह तय की गई है। इसके अनुसार एक परिवार में औसतन 5 सदस्यों के लिए यह कुल 4,855 रुपए की मासिक पारिवारिक आय तय की गई। अगर इसमें 8 साल में महंगाई में हुई 2 फीसदी की औसतन वृद्धि को भी जोड़ दिया जाए तो प्रति व्यक्ति आय आज की तारीख में 1,138 रुपए होनी चाहिए और 5 सदस्यों वाले परिवार की मासिक आय 5,700 रुपए होनी चाहिए।
सर्वे के अनुसार, 77 फीसदी परिवार ऐसे हैं, जिनकी आमदनी 5,770 रुपए से कम है और इन परिवारों में औसतन 6 से 9 सदस्य हैं। सोशल ऑडिट रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि इनमें से जो परिवार सबसे बेहतर आर्थिक स्थिति वाले हैं, उनकी सालाना आय लगभग 1.6 लाख रुपए है। सर्वे में शामिल किए गए परिवारों में से 82 फीसदी परिवारों की आय का जरिया मजदूरी है।
मुजफ्फरपुर के ज्यादातर अस्पतालों और डॉक्टरों ने चमकी बुखार के प्रकोप के दौरान अपनी सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम कर लिए। कोलकाता में डॉक्टरों पर हुए हमले से भी पहले मुजफ्फरपुर के बड़े अस्पतालों ने निजी कंपनियों के गार्ड की सेवा सुरक्षा के लिए ली थी। बड़े अस्पतालों के पास अपने गार्ड हैं, जबकि छोटे अस्पतालों ने पूल फंडिंग के जरिए सुरक्षा का इंतजाम किया है। सुरक्षा के लिए गनमैन, बॉडी बिल्डर्स और लाठी से लैस आदमियों को तैनात किया है। सुरक्षा के ऐसे इंतजाम की वजह से ही 100 से अधिक बच्चों की मौत के बाद भी मुजफ्फरपुर में डॉक्टरों के साथ हिंसा की कोई वारदात नहीं हुई।
चमकी बुखार से पीड़ित परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि इनमें से एक तिहाई परिवारों के पास राशन कार्ड तक नहीं है। सर्वे में शामिल परिवारों में से हर छठे परिवार ने स्वीकार किया कि उन्हें पिछले महीने में कोई राशन नहीं मिला। सर्वे में शामिल 287 परिवारों में से 200 (70 फीसदी) परिवारों ने स्वीकार किया कि चमकी बुखार का पता लगने से कुछ देर पहले तक उनके बच्चे धूप में खेल रहे थे। पीड़ित बच्चों में से 61 बच्चे ऐसे थे जिन्होंने बीमार होने से पहली रात को कुछ भी नहीं खाया था।
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दिमागी बुखार से पीड़ित चार में से तीन परिवारों का गरीबी से है गहरा रिश्ता -82 फीसदी प्रभावित मजदूरी करके करते हैं जीवन-यापन