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ब्रिटेन में कोरोना संक्रमण में गोरे निवासियों की तुलना में अश्वेत और अल्पसंख्यक अधिक मारे 

ब्रिटेन में कोरोना संक्रमण में गोरे निवासियों की तुलना में अश्वेत और अल्पसंख्यक अधिक मारे 

लंदन । ब्रिटेन में कोरोना के कारण गोरे निवासियों की तुलना में अश्वेत और अन्य जातीय के अल्पसंख्यक लोग अधिक मर रहे हैं।इसकी जानकारी देकर सरकारी कमीशन रिपोर्ट ने कहा कि ऐसा संभवत: टीकाकरण की कम दरों के कारण हो सकता है। अध्ययन में पाया गया है कि गोरे लोगों में वायरस के पॉजीटिव टेस्ट की संभावना अधिक होती है, लेकिन अश्वेत और दक्षिण एशिया मूल के ब्रिटेन निवासियों में उच्च मृत्यु दर होती है। पहली दो लहरों में यह देखा गया है कि मुख्य रूप से गोरों की तुलना में जातीय अल्पसंख्यकों में उच्च मृत्यु दर रही।
उन्होंने कहा कि ऐसा संक्रमण के उच्च जोखिम के कारण हुआ और इससे विशेष रूप से वृद्ध आयु वर्ग के लोग प्रभावित हुए।हाल के दिनों में हम गोरे लोगों की तुलना में जातीय अल्पसंख्यकों में कम संक्रमण दर देख रहे हैं, लेकिन अस्पताल में भर्ती होना और उनकी मृत्यु की दर अभी भी अधिक है। इस पैटर्न के साथ अब उच्च जोखिम वाले समूहों में टीके के स्तर का मिलान हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन दिनों ब्रिटिश स्वास्थ्य अधिकारियों ने बड़ा अभियान शुरू किया है।इससे जातीय अल्पसंख्यकों के बीच टीके की झिझक दूर हो रही है।अभियान में सामुदायिक समूहों और धार्मिक नेताओं ने भी अपना योगदान दिया है।
उन्होंने कहा कि इससे कुछ सफलता मिली है।अक्टूबर से पहले छह महीनों में किसी भी समूह में अफ्रीकी और पाकिस्तानी लोगों में टीकाकरण दरों में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई है। लेकिन कुल टीकाकरण दर गोरे लोगों में सबसे अधिक और अश्वेत समूहों में सबसे कम है।ब्रिटेन में लगभग 90 प्रतिशत वयस्कों को कम से कम एक वैक्सीन की खुराक मिली है, लेकिन एशियाई समुदायों में यह आंकड़ा 80 प्रतिशत से कम है और ब्लैक अफ़्रीकी और ब्लैक कैरेबियन पृष्ठभूमि के लोगों में दो-तिहाई से भी कम है।
समानता मंत्री ने कहा कि कोरोना विभिन्न जातीय समूहों को कैसे प्रभावित करता है, महामारी शुरू होने के बाद से इसकी समझ बदल गई है।यह जरूरी है कि जोखिम वाले लोगों को उनका बूस्टर टीका मिल जाए। उन्होंने कहा कि अब हम जानते हैं कि वे कहां रहते हैं, और वे कितने लोगों के साथ रहते हैं, यह उतना अहम नहीं है, जितना कि वायरस के प्रति उनकी संवेदनशीलता।सरकार का लक्ष्य है कि जनवरी तक 18 साल और उससे अधिक आयु के सभी लोगों को तीसरी बूस्टर खुराक दे दी जाए।
 

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