बहुत बड़ा कवि था इमरसन। वह घूमने निकला। अकस्मात वर्षा आ गई। उसके पास अपनी कविताओं की एक पांडुलिपि थी। भीगने के डर से उसने वह पांडुलिपि एक दुकानदार के पास रख दी। इमरसन चला गया। दुकानदार ने कहा कि पन्ने भरे हुए हैं, कुछ खाली हैं वह भरे हुए पन्नों में वस्तुएं लपेटकर ग्राहकों को देता रहा। कुछ देर बाद जब वर्षा रूकी, इमरसन आया। पांडुलिपि मांगी। दुकानदार ने कहा, 'माफ करना, भरे पन्नों का मैंने उपयोग कर लिया है। खाली पन्ने ज्यों के त्यों हैं। भरे काम के नहीं थे। खाली लिखने के काम आ सकते हैं।' यह सुनते ही इमरसन का माथा ठनका। उसकी महत्वपूर्ण कविताओं के पन्ने निकल चुके थे। शेष बचे थे केवल कोरे कागज।
व्यवहार की दुनिया में खाली का मूल्य नहीं होता, भरे का मूल्य होता है। खाली पन्ने का क्या मूल्य हो सकता है व्यवहार की दुनिया में? इसी प्रकार खाली चित्त और खाली मन का भी क्या मूल्य हो सकता है व्यवहार की दुनिया में? व्यवहार में जीने वाले यही चाहते हैं कि ये सब सदा भरे ही रहें, कभी खाली न हों। जब अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है तब भरे का क्या मूल्य है और खाली का क्या मूल्य है, स्पष्ट हो जाता है।
उस यात्रा में अनुभव होता है कि लिखा हुआ कागज चला गया, अच्छा हुआ। भरा हुआ मन, भरी हुई बुद्धि, भरा हुआ चित्त खाली हो गया तो अच्छा हुआ। वहां खाली होना ही श्रेयस्कर माना जाता है। जब खाली होने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है, तब उस क्षण में जो अनुभव होता है, वही वास्तव में चैतन्य का अनुभव है।
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(चिंतन-मनन) व्यवहार की दुनिया