मोदी सरकार की दूसरी पारी का मध्यांतर काल चल रहा है, अर्थात्् दूसरी पारी के तीस महीनें गुजर चुके और तीस महीने शेष है, इस मध्यांतर काल में आखिर मोदी जी को अपनी पार्टी के सांसदों को इतनी सख्त चेतावनी आखिर क्यों देनी पड़ी कि ”बदल जाईये, वरना बदल दिये जाओगे“, प्रधानमंत्री जी सांसदों की सदन में गैर हाजरी से नाराज है, या अपने स्तर पर सभी संसदीय क्षेत्रों में कराये गये गोपनीय सर्वेक्षण की आई ताजा रिपोर्ट से? कोई न कोई तो अहम कारण रहा ही होगा, जिसके कारण शांत-प्रशांत मोदी जी को ऐसे तेवर दिखाने को मजबूर होना पड़ा? फिर उनका यह कहना कि ”मैं आपके साथ बच्चों जैसा व्यवहार करूं, यह मेरे लिये ठीक नहीं....“ अरे मोदी जी आप न सिर्फ सांसद बल्कि पूरी भाजपा के लिए पिछले साढ़े सात सालों में ”पितृपुरूष“ बन चुके है, यह आप भली प्रकार जानते है कि भाजपा में आपके इशारे के बिना ’पत्ता‘ भी नहीं हिलता और ये जो सांसद या विधायक है ना, ये सब आपके बच्चों के समान तो है ही, फिर इसमें इनके साथ बच्चों जैसा ’ट्रीट‘ करने में क्या भला और क्या बुरा?
देश के जो बुद्धिजीवी आपकी ताजा चेतावनी का अर्थ यह लगा रहे है कि आपको यह महसूस होने लगा है कि आपके ’चमत्कारी जादू‘ का असर अब धीरे-धीरे कम होने लगा है और अभी अगले दो सालों में चुनावी चुनौतियाँ भी बहुत है, फिर जहां तक संसद का सवाल है, संसद में पिछले कुछ दिनों से प्रतिपक्ष इतना आक्रामक हो गया है कि वह संसद को चलने ही नहीं दे रहा है, उनके सामने सत्तारूढ़ दल कमजोर नजर आने लगा है और संसद की न तो बैठकें हो पा रही है और न ही कोई संसदीय कार्य हो पा रहा है और सत्तारूढ़ दल के सांसदों को अपने निजी तिकड़म भरे कामों से फुर्सत ही नही है उनकी प्राथमिकता अब संसद या सदन नहीं बल्कि अपने तिकड़मी स्वार्थ सिद्धी के कार्य रह गए है, सत्तारूढ़ सांसद समझ रहे है कि जब तक मोदी जी है तब तक वे पूर्णता: सुरक्षित है यही सब सोचकर मोदी जी को यह कहना पड़ा कि ”आप लोग मोदी के कारण नहीं अपने कामों के ही बलबूते पर राजनीति में स्थायित्व प्राप्त कर सकते हो“, कुल मिलाकर मोदी जी की इस चेतावनी को यदि गंभीरता से सत्ता से जुड़े सांसदों तो क्या किसी ने भी नहीं लिया तो फिर ”शांत-प्रशांत“ मोदी ’ज्वालामुखी‘ का रूप भी धारण कर सकता है?
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अगले दो सालों में करीब बीस राज्यों (लगभग आधे हिन्दुस्तान) में विधानसभाओं के चुनाव होना है, और भाजपा का सपना पूरे देश के सभी राज्यों में अपनी सरकारें देखने का है, जिसका अमित शाह व भाजपाध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने संकल्प ले रखा है और राज्यों में भाजपा की हालत यह है कि उसका मूल आधार ही धीरे-धीरे खिसकता नजर आ रहा है, गैर-भाजपा शासित राज्यों में तो ठीक, किंतु जिन राज्यों में भाजपा की ही सरकारें है, वहां पार्टी नेताओं को इतना गरूर आ गया है कि उन्हें अपनी ”जी-हुजूरी“ करवाने से ही फुर्सत नहीं है। मोदी जी द्वारा भाजपा शासित राज्यों में कराये गए ताजा सर्वेक्षण की रिपोर्ट में भी यही दर्शाया गया है, इसी कारण मोदी जी अपना तेज कम होने के साथ भाजपाईयों के मौजूदा रवैये से अच्छे खासे परेशान नजर आ रहे है और यही मोदी जी की ताजा ’डांट-डपट‘ की मुख्य वजह है, वे समझ नहीं पा रहे है कि आखिर वे ’गाड़ी को पटरी पर लाने के लिये क्या करें?‘ भाजपा संसदीय दल की ’बंद दरवाजा‘ बैठकों में भी इसी ज्वलंत मसले पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
इसी कारण आज स्थिति यह है कि प्रतिपक्ष एकजुट होकर मोदी जी का सामना करने का प्रयास कर रहा है और ममता जी व संजय राऊत जैसे नेता सक्रिय हो गए है.... और अगला संघर्ष मजबूती के साथ लड़ने की तैयारी में जुट गए है, इस प्रकार मौजूदा माहौल मोदी जी के लिए कश्मीर से भी बड़ी समस्या बनकर उभरने लगा है।
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बदल जाओ.... वरना पूरे घर के बदल डालूँगा....!