राफेल करार को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट बुधवार को संसद में पेश कर दी गई। कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उसने यूपीए की तुलना में काफी ज्यादा पैसे देकर फ्रांस की दसाल्ट कंपनी से राफेल करार किया है। जबकि, केंद्र सरकार ने दावा किया 36 लड़ाकू विमानों का उसका करार यूपीए शासनकाल में किए गए करार से 9 फीसदी सस्ता है। इन दोनों दावों के विपरीत, कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 2.86 फीसदी सस्ता है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैग रिपोर्ट को सरकार के इशारे पर तैयार की गई बताया है।
2007 में यूपीए ने 126 नए एयरक्राफ्ट खरीदने का सौदा किया था, जिनमें से 18 विमान उड़ने की स्थिति में मिलने वाले थे और बाकी 108 विमान एचएएल के सहयोग से बनाए जाने थे। एनडीए सरकार ने 36 राफेल विमानों का सौदा किया, जो फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से ही मिलने हैं। विपक्ष इस बात को लेकर आक्रामक होता रहा है कि सरकार एक तरफ मेक इन इंडिया की बात करती है जबकि, दूसरी तरफ सभी विमानों की खरीद विदेशी कंपनी से कर रही है।
यूपीए के 18 विमानों के मूल्य को दोगुना करके एनडीए के 36 विमानों के साथ तुलना की गई। अनुबंध में 14 उपकरणों के लिए छह पैकेज थे। कैग की रिपोर्ट में एनडीए और यूपीए सरकार के सौदे की इन छह स्तरों पर तुलना की गई। फ्लाइवे एयरक्राफ्ट पैकेज में दोनों की कीमतों में कोई अंतर नहीं था। सर्विस प्रॉडक्ट के मामले में केंद्र की मौजूदा सरकार का सौदा 4.77 फीसदी सस्ता था। विमान में भारतीय उपकरण लगाने का खर्च एनडीए सरकार के सौदे में 17.08 प्रतिशत कम है। हालांकि इंजीनियरिंग सपॉर्ट पैकेज (6.64 फीसदी), लॉजिस्टिक्स (6.54 फीसदी), और ग्राउंड इक्विपमेंट (0.15 फीसदी) यूपीए सरकार में सस्ता था। दोनों करारों के बीच अगर तुलना की जाए तो मौजूदा केंद्र सरकार का सौदा पिछली यूपीए सरकार के मुकाबले 2.86 फीसदी सस्ता था। 2007 में यूपीए सरकार के अनुबंध के मुताबिक तैयार किए गए विमान 37 महीने और 50 महीने में भारत को मिलने थे जबकि 2016 के एनडीए के सौदे के मुताबिक 18 विमानों की पहली खेप 36 से 53 महीने में और 67 महीने में बाकी के 18 विमान दिए जाने हैं। यूपीए सरकार के डिलीवरी शेड्यूल के मुकाबले यह 5 महीने कम है। हालांकि भारतीय उपकरण वाले विमान मिलने में यूपीए सरकार के मुकाबले केवल एक महीने का अंतर है।
2007 में दसॉल्ट ने परफ़ॉर्मेंस और फाइनेंशियल गारंटी दी थी, जो अनुबंध की 25 प्रतिशत थी। हालांकि 2016 के सौदे में ऐसी कोई गांरटी नहीं दी गई। इस मामले में दसॉल्ट को फायदा हुआ है। ऑफसेट के मामले में कैग एक दूसरी रिपोर्ट पेश करेगा, जिसमें पिछले पांच साल में सेना के लिए किए गए सारे ऑफसेट सौदे शामिल होंगे। इसका प्रारूप रक्षा मंत्रालय को टिप्पणी के लिए दे दिया गया है, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले इसे पेश करना मुश्किल है। एनडीए सरकार का दावा है कि इस डील में 'मेक इन इंडिया' अभियान को समर्थन देने के लिए ऑफसेट प्राप्त करना शामिल है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैग रिपोर्ट को पूरी तरह खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट सरकार के इशारे पर तैयार की गई है। इसमें अनेक महत्वपूर्ण बातों की अनदेखी की गई है। सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद ने इसे राहुल गांधी का 'महाझूठ' बताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष की नीयत पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि राहुल विदेशी कंपनियों के साथ लॉबीइंग कर रहे हैं।
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केंद्र सरकार के इशारे पर तैयार की गई राफेल पर कैग की रिपोर्ट : राहुल