प्रकृति में तीन शक्तियां हैं- ब्रह्म शक्ति, विष्णु शक्ति और शिव शक्ति। प्राय: तुममें कोई भी एक शक्ति अधिक प्रबल होती है। ब्रह्म शक्ति वह ऊर्जा है जो नव-निर्माण करती है; विष्णु शक्ति ऊर्जा का पालन करती है और शिव शक्ति वह ऊर्जा है जो रूपांतरण करती है- नया जीवन देकर या संहार कर। तुममें से कुछ हैं जिनमें ब्रह्म शक्ति प्रबल है। तुम सृष्टि तो कर सकते हो, पर अपनी रचना को सुरक्षित नहीं रख पाते। हो सकता है तुम तुरंत ही नए मित्र बना लो, परंतु वह मित्रता अधिक समय तक टिकती नहीं। तुममें कुछ और लोग हैं जिनमें विष्णु शक्ति है। तुम रचना नहीं कर सकते, परंतु जो है उसे अच्छी तरह संभालकर रखते हो। तुम्हारी सभी पुरानी दोस्ती बहुत स्थायी होती है, परंतु तुम नए मित्र नहीं बना पाते। और तुममें कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनमें शिव शक्ति प्रबल है। वे नव-जीवन लाते हैं या रूपांतरण, या जो है उसे खत्म करते हैं। गुरु शक्ति में ये तीनों शक्तियां पूर्ण रूप से प्रफुल्लित हैं। पहले यह पहचानो कि तुममें कौन-सी शक्ति प्रबल है और फिर गुरु शक्ति की आकांक्षा करो, प्रार्थना करो।
संपूर्ण सृष्टि सरलता और बुद्धिमत्ता के मंगलमय लय से प्रकृति के नियमों पर चल रही है। यही मंगल ही दिव्यता है। शिव वह सामंजस्यपूर्ण सरलता है जो कोई नियंत्रण नहीं जानती। शिव का विपरीत है वशी, यानी नियंत्रण। नियंत्रण मन का होता है। नियंत्रण का अर्थ है दो, द्वैत, कमजोरी। वशी का अर्थ है स्वाभाविकता से कुछ करने के बजाए दबाव द्वारा कुछ करना। प्राय: लोग समझते हैं कि उनका जीवन, परिस्थितियां उनके नियंत्रण में, उनके वश में हैं; परंतु नियंत्रण एक भ्रम है, मन में क्षणिक ऊर्जा का दबाव नियंत्रण है। यह है वशी। शिव इसका विपरीत है। शिव ऊर्जा का स्थाई और अनंत स्रेत है, सत्ता की अनंत अवस्था, वह एक जिसका कोई दूसरा नहीं। द्वैत भय का कारण है और वह सामंजस्यपूर्ण सरलता द्वैतवाद को विलीन करती है। जब एक क्षण पूर्ण है, संपूर्ण है; तब वह क्षण दिव्य है। वर्तमान क्षण में होने का अर्थ है- न भूतकाल का पछतावा, न भविष्य की कोई मांग। समय रुक जाता है, मन रुक जाता है। तुम्हारे शरीर के प्रत्येक कोष में पांचों इंद्रियों की क्षमता है। आंखों के बिना तुम देख सकते हो, दृष्टि चेतना का अंश है; इसीलिए स्वप्न में तुम आंखों के बिना देख सकते हो।
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(चिंतन-मनन) प्रकृति की तीन शक्तियां