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दूसरे से तुलना छोड़ स्वयं से लिखें अपनी तक़दीर 

दूसरे से तुलना छोड़ स्वयं से लिखें अपनी तक़दीर 

बीते दिनों भारत की झोली में एक वैश्विक स्तर की सफ़लता आई। 21वीं सदी में 21वर्ष की हरनाज ने 21साल का सूखा ख़त्म करके यह सफलता मिस यूनिवर्स के रूप में प्राप्त की। जैसा कि नाम से स्पष्ट हो रहा है उसे वास्तविक धरातल पर लाते हुए हरनाज ने सभी को नाज करने का अवसर उपलब्ध कराया। हरनाज ने भारत को तीसरी बार मिस यूनिवर्स का खिताब दिलाया। यह खिताब कहीं न कहीं ना सिर्फ उनकी सुंदरता की वजह से मिला, बल्कि उनके नेक और सुंदर विचारों को लेकर मिला। हरनाज से सवाल पूछा गया था कि वर्तमान दौर में युवा महिलाएं जो दबाव महसूस कर रही है उनको क्या सलाह देंगी जिससे वो दबाव का सामना कर सकें? इस सवाल का हरनाज ने बहुत ही खूबसूरती से जवाब दिया कि महिलाएं अपने आप की दूसरों से तुलना करना बंद करें और पूरी दुनिया में जो भी घटित हो रहा उस पर बात करें , बाहर निकले खुद के लिए आवाज उठाएं। हरनाज का मानना है कि, "मैं खुद में विश्वास करती हूं और इसीलिए आज यहां खड़ी हूं"। ऐसे में हरनाज ने न केवल महिलाओं की स्थिति को बख़ूबी बयां किया है बल्कि औरतों को ख़ुद पर विश्वास करने की भी प्रेरणा दी है। 
 
वैसे आज यह न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया भर की करोड़ो महिलाओं के लिए यह गर्व की बात है। आज ऐसी कितनी महिलाएं है जो अपनी आवाज उठा पाती है। अपने सपनों को पूरा कर पाती है। दुनिया भर में महिलाएं आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही है। पर क्या उसे अपने हिस्से की आजादी मिल रही? बेशक इसका जवाब ना में ही होगा। बात अगर महिलाओं के संदर्भ में ही करें तो आज भी महिलाओं को अपनी बात रखने का अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी होती है। जिसकी शुरुआत उसके अपने ही घर से ही होती है। वहीं वर्तमान दौर में अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात तो सभी करते है पर बात जब महिलाओं के हक की हो तो हमारा पुरुष प्रधान समाज चुप्पी साध लेता है। अमेरिका में रहने वाली महिला हो या भारत के किसी ग्रामीण क्षेत्र की महिला हो अमूमन दोनों की स्थिति लगभग एक जैसी है। हमारे देश में ही देख लो हर कोई महिला की अभिव्यक्ति की आजादी की बात करता है बस शर्त यही है कि वह महिला अपने घर की ना हो। कहने को तो आज महिलाएं अंतरिक्ष तक अपनी बुलन्दी के झंडे गाड़ चुकी है। लेकिन आज भी ऐसी करोड़ों महिलाएं है जिनकी आवाज को दबा दिया जाता है। वर्तमान दौर में दुनिया ग्लोबलाइजेशन की ओर बढ़ रही है। आज भले ही हम मीलों का फासला चंद पलों में तय कर रहे है, लेकिन दिलों में एक गहरी खाई पनप सी गई है। आज भी पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं की आज़ादी उनकी अभिव्यक्ति को स्वीकार नहीं कर पाता है। वजह साफ है क्योंकि यदि महिलाएं अपने हक मांगने लगी तो हमारे पितृसत्तात्मक समाज को अपनी सत्ता अपना सिंहासन डोलते हुए नज़र आने लगता है।

आज महिलाएं आज़ाद होकर भी आजाद नहीं है। सामाजिक बेड़ियों में महिलाओ को बांधने की हमारी परंपरा पुरानी रही है। वहीं महिलाओं को देवी मानकर पूजने का ढोंग किया गया जिसकी कीमत महिलओं को अपने त्याग बलिदान से चुकानी होती है। कोरोना काल की ही बात करें तो सम्पूर्ण विश्व इस वैश्विक महामारी में संघर्षरत रहा। दुनिया वैश्विक मंदी के गर्त में चली गई। लाखों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा पर दुर्भाग्य देखिए कि इसमें भी महिलाओं का प्रतिशत सर्वाधिक रहा। भारत के ही संदर्भ में बात करें तो वैश्विकरण के दौर में दुनिया इंटरनेट के माध्य्म से आगे बढ़ रही है। तो हमारा देश इस परिपेक्ष्य में आज भी पिछड़ा हुआ है एक तरफ देश फ़ाइव जी की दिशा में आगे बढ़ रहा है तो वही लड़कियों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आने की आज़ादी तक नहीं है। यहां एक सर्वे की बात करें तो भारत में 42 फ़ीसदी लड़कियों को दिन में मात्र एक घंटे से भी कम समय मोबाईल फोन इस्तेमाल की इजाज़त दी जाती है। अब सोचिए आधुनिक युग मे भी महिलाएं सोशल प्लेटफॉर्म का उपयोग तक नहीं कर सकती? फ़िर वह कैसे अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी की पैरवी करेगी? वैसे सवाल कई हैं, लेकिन उनके जवाब देने वाला कोई नहीं। फिर ऐसे में समझ इतना ही आता है कि हरनाज ने ना सिर्फ़ हमें और हमारे समाज को नाज़ करने का एक मौका उपलब्ध कराया है, बल्कि उन महिलाओं या आधी आबादी को भी एक संदेश दिया है, ताकि वह उठकर अपने हक़ के लिए लड़ सकें। वैसे राजनीति से जुड़ें सियासतदां भी कई बार महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं। आगामी दौर में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को ही ले लीजिए। इसमें एक राजनीतिक दल ने अपना स्लोगन ही दिया है, "लड़की हूँ, मैं लड़ सकती हूं", लेकिन यह एक चुनावी स्लोगन है। इस पर विश्वास कितना करना यह आधी आबादी को स्वयं सोचना चाहिए। वहीं हरनाज ने जिन बातों का जिक्र किया। उसे अगर वास्तविक रूप से आधी आबादी अपने जीवन का हिस्सा बना लें, तो निःसन्देह महिलाओं की दिशा और दशा भारतीय समाज में नेतृत्वकर्ता की नहीं तो पूरक की बन ही सकती है। वैसे भी किसी भी समाज की उन्नति स्त्री-पुरुष दोनों की सहभागिता से ही सुनिश्चित हो सकती है। ऐसे में एक लंबे समय तक स्त्रियों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। 

वहीं एक बात यह भी की हरनाज को ब्रम्हांड सुंदरी से नवाजा गया है यह गर्व का विषय है पर देखा जाएं तो दुनिया मे ऐसी कौनसी स्त्री है जो सुन्दर नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है कि कोई बहुत ज्यादा सुंदर है तो कोई कम सुंदर। स्त्री में सर्जन करने की शक्ति है वह सहनशीलता और त्याग की मूरत है। फिर भी ऐसे में वर्तमान समय में समाज उसे कमज़ोर और अबला बनाने का प्रयास कर रहा है। आज टेलीविजन पर ही देखें तो महिलाओं को अश्लीलता के रूपक या फिर एक उत्पाद के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है। जो कहीं न कहीं दूषित मानसिकता का परिणाम है। ऐसे में सवाल यही कि यह महिला सशक्तिकरण का कैसा रूप है? जिसे अभिव्यक्ति की आज़ादी के रूप में परोसा जा रहा है। लेकिन अफ़सोस की इस विषय पर कोई बात नहीं करता। स्त्रियां भी चुप और समाज भी चुप। वैसे हमारे पुरुष प्रधान समाज ने तो सदैव स्त्रियों को दोयम दर्जे का ही माना है, लेकिन अफ़सोस की महिलाएं भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं करती है। इसके अलावा हरनाज की विश्व सुंदरी बनने से कहीं ज्यादा चर्चा उनके द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर दिए गए उनके जवाब को लेकर की जा रही है। ऐसे में अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि हरनाज के विश्व सुंदरी बनने के क्या मायने है और वह महिलाओं को अभिव्यक्ति और अपने लिए आवाज उठाने के लिए कितना जागरूक कर पाएगी, लेकिन एक बात तो है कि भारत में सदैव स्त्री को सौंदर्य की देवी माना गया है। यहां तक कि स्त्री की तुलना भगवान से भी की गई है लेकिन यह अलग बात है कि उसे वह सम्मान हमारे पुरुष प्रधान समाज ने नहीं दिया गया। वहीं अब समय आ गया है कि महिलाएं अपने लिए मुखर हो , अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाए और अपने साथ हो रहे अन्याय का विरोध करे। तभी स्त्री सुंदरता की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी और कहीं न कहीं इसी राह पर चलते हुए हरनाज ने देश को 'नाज' करने का अवसर दिया।
(लेखक-सोनम लववंशी )

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