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ओमीक्रोन पर अधिकांश टीके बेअसर, 6 माह रहती है कोवीशील्ड प्रभावी, माडर्ना-फाइजर हर वैरिएंट पर कारगर -अध्ययन में सामने आई जानकारी 

ओमीक्रोन पर अधिकांश टीके बेअसर, 6 माह रहती है कोवीशील्ड प्रभावी, माडर्ना-फाइजर हर वैरिएंट पर कारगर -अध्ययन में सामने आई जानकारी 

नई दिल्ली । पूरी दुनिया से कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर डरावने आंकड़े सामने आने लगे हैं। भारत में भी ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों की संख्या डेढ़ सौ के पार पहुंच गई है। चिंता की बात यह है कि शुरुआती रिसर्च से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि ज्यादातर वैक्सीन भी इसके खिलाफ कारगर नहीं है। बस राहत की बात यह है कि वैक्सीन लेने वाले लोग ओमिक्रॉन से संक्रमित होने के बाद ज्यादा गंभीर रूप से बीमार नहीं हो रहे हैं। कोरान की मौजूदा वैक्सीन कितनी कारगर हैं, इसको लेकर दुनिया के कई देशों में इस समय शोध किए जा रहे हैं। रिसर्च की शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ ऐसे लोग ओमिक्रॉन के संक्रमण से बच रहे हैं, जिन्होंने बूस्टर डोज़ के साथ फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन ली है। लेकिन ये दोनों वैक्सीन अमेरिका के अलावा कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं। एस्ट्राजेनेका जॉनसन एंड जॉनसन और रूस की वैक्सीन भी ओमिक्रॉन के खिलाफ ज्यादा कारगर नहीं हैं। ऐसे में कोरोना की महामारी को रोकना आसान नहीं होगा।
अब तक के अधिकांश सबूत लैब प्रयोगों पर ङई आधारित हैं, जो शरीर की इम्यूनिटी को पूरी तरह कवर नहीं करते हैं। फाइजर और मॉडर्न की वैक्सीन नई एमआरएनए तकनीक पर आधारित है। इन दोनों वैक्सीन ने अब तक लोगों को कोरोना के हर नए वेरिएंट से सुरक्षा दी है। अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में इसका इस्तेमाल हुआ है। उधर चीन की दोनों वैक्सीन सिनोफार्म और सिनोवैक ओमिक्रॉन के खिलाफ बिल्कुल कारगर नहीं है। जबकि पूरी दुनिया में वैक्सीन की आधी डोज़ इन्हीं दो टीकों से लगे हैं। इसमें चीन और ज्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देश जैसे कि मेक्सिको और ब्राजील शामिल हैं। 
ब्रिटेन में एक शुरुआतीअध्ययन में पाया गया कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लेने के छह महीने बाद ओमिक्रॉन के संक्रमण से सुरक्षा नहीं मिलती है। भारत में नब्बे प्रतिशत वैक्सीन लेने वाले लोगों को कोविशील्ड ब्रांड नाम के तहत यहीं टीके लगे हैं। इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल अफ्रीका में भी किया गया है। जहां ग्लोबल कोविड वैक्सीन कार्यक्रम कोवैक्स ने 44 देशों को इसकी 67 मिलियन खुराक बांटी है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि रूस की स्पुतनिक वैक्सीन, जिसका उपयोग अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी किया जा रहा है इससे भी ओमाइक्रोन के खिलाफ सुरक्षा नहीं मिलती है। जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन का भी यही हाल है। इससे भी ओमिक्रॉन के खिलाफ सुरक्षा न के बराबर मिलती है।
 

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