नई दिल्ली । अमेरिका के सीनेटर एलिजाबेथ और कोरी बुकर ने वैक्सीन के दोनों डोज और बूस्टर लगवा लिया था, फिर भी वह कोरोना से संक्रमित हो गई हैं। इसके बाद पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया है। बायोकॉन की किरण मजूमदार शॉ ने ट्वीट करके कहा है कि ऐसा लगता है कि एमआरएनए नए वेरिएंट के ब्रेकथ्रू को रोकने में नाकाम रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नोवावैक्स का बूस्टर इस पर कैसा प्रदर्शन करता है। नोवावैक्स वैक्सीन को पुणे की सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) कोवोवैक्स ब्रांड नाम के साथ बना रहा है। भारत में कोविड सलाहकार निकाय के विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन, कोविशील्ड के दो डोज ले चुके लोगों को लगने वाले तीसरे डोज की तुलना में बेहतर विकल्प होगा।
अमेरिका के मैरीलैंड में स्थित बायोटेक कंपनी नोवावैक्स का कहना है कि वह गंभीर संक्रामक बीमारियों के लिए नेक्सट जेनरेशन वैक्सीन को विकसित करने का काम करता है। जब महामारी की शुरुआत हुई, तब कंपनी ने वैक्सीन बनाने के लिए अपनी नैनोपार्टीकल आधारित तरीके के साथ कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने पर काम करना शुरू किया। पिछले साल अगस्त में, जब वैक्सीन का ट्रायल करवाने वाले अभ्यर्थी मध्य चरण में थे, कंपनी ने घोषणा की थी कि वह सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर कम और मध्यम आय वाले देश,जिनमें भारत भी शामिल है, उनके लिए 100 करोड़ टीकों का उत्पादन करेगा।
17 दिसंबर, 2021 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवावैक्स के लिए आपातकालीन इस्तेमाल की सूची जारी की है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि निम्न आय वाले देशों में वैक्सीन को बढ़ावा देने के लिए यह यह ज़रूरी कदम है। संगठन का कहना है कि कोवोवैक्स का मूल्यांकन भारत के औषधि महानियंत्रक ने उसके असर, गुणवत्ता, सुरक्षा और जोखिम प्रबंधन योजना के डेटा की समीक्षा के आधार पर किया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ समूह का मानना है कि वैक्सीन का लाभ उसके जोखिम से कहीं ज्यादा है और इसे दुनियाभर में इस्तेमाल किया जा सकता है।
रिपोर्ट बताती हैं कि भारत के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) की विशेषज्ञ समिति (एसईसी) ने एसआईआई से कोवावैक्स से जुड़े और डेटा की मांग की थी, जिससे दवा महानियंत्रक से इसके आपातकालीन इस्तेमाल के लिए अनुमति ली जा सके। विशेषज्ञ समिति का कहना है कि नोवावैक्स वैक्सीन की तकनीक का स्थानांतरण जिस देश से किया गया है, इस वैक्सीन को अभी वहीं पर इस्तेमाल की अनुमति नहीं मिली है।
कोविड-19 के खिलाफ ज्यादातर वैक्सीन का काम वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करना होता है, यही प्रोटीन मानव कोशिका में जाकर उसे संक्रमित कर देती है। इसके पीछे यह विचार होता है कि स्पाइक प्रोटीन की पहचान करने के लिए इम्यून सिस्टम को प्रशिक्षित किया जाए। जिससे वह एंटीबाडी उत्पन्न कर सके। इसके लिए वैक्सीन बनाने के अलग-अलग तरीके हैं। जैसे कोविशील्ड या स्पूतनिक जिसमें एक अलग वायरस के साथ कमजोर स्पाइक प्रोटीन को जोड़ कर मानव कोशिका में भेजा जाता है। जिससे इम्यून सिस्टम सक्रिय हो जाता है। इसके अलावा न्यूक्लि एसिड या जेनेटिक वैक्सीन होती है जिसमें वायरस की अनुवांशिक सूचना से शरीर को एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। फाइजर औऱ मॉडर्ना एमआरएए और डीएनए वैक्सीन, जायकोव-डी इसी श्रेणी में आती हैं।
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वैक्सीन की दोनों डोज और बूस्टर के बाद भी कोरोना से संक्रमित हुईं अमेरिकी सीनेटर