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स्वस्थ तन-स्वस्थ मन 

स्वस्थ तन-स्वस्थ मन 

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग व्यायाम बहुत जरूरी हैं। योग करने से एक और जहां मन को सुकून मिलता है दूसरी ओर एकाग्रता का विकास होता है। योग हमारे शरीर को स्वस्थ संतुलित रखने में मदद करता है।
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य के ऊपर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि मनुष्य के शरीर, कारोबार और आस-पास के वातावरण पर मन का गहरा प्रभाव पड़ता है। आज प्रतिस्पर्धा और भाग-दौड़ की दुनिया में 90 प्रतिशत से अधिक बीमारी साइकोसोमैटिक (मनोदैहिक) है। इनकी उपज ज्यादातर मानसिक तनाव, अस्थिरता और अस्वस्थता के कारण ही है। फलस्वरूप अपराध वृत्ति, असामाजिक कार्य, अवसाद एवं आत्मघात आदि में अतिशय वृद्धि हुई है। इस विषम परिस्थिति से उबरने के लिए व्यक्ति और समाज में मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा, महत्व और उसे प्राप्त करने के सरल और सहज उपाय के बारे में जन जागृति लाना जरूरी है। सबसे पहले मन को जानने और उसे सुखी और संतुलित करने के बारे में सही समझ और जानकारी प्राप्त करनी है। मनुष्य का मन चार आयामों से बना है- संकल्प, भावना, नजरिया और स्मृति। मन के ये चार प्रवाह सकारात्मक, नकारात्मक, साधारण या व्यर्थ भी हो सकते हैं।
जब मन के संकल्प सकारात्मक होते हैं तब भावनाएं और स्मृतियां सकारात्मक ही निकलती हैं। इससे मन शांत, स्थिर, संतुलित और स्वस्थ रहता है। वास्तव में, सकारात्मक मन ही स्वस्थ और शक्तिशाली मन है। इसके विपरीत नकारात्मक या व्यर्थ सोच अशांत, तीव्र, अस्थिर, असंतुलित और घातक होती है जो मन की भावनाओं, दृष्टिकोण और स्मृतियों को अनुमान, आशंका, भय, कमजोरी, अवसाद, नशा, बुरी आदत और आत्मघात की ओर धकेलती है। यह नकारात्मक स्थिति अस्वस्थ और दुर्बल मन की ही उपज है। जरूरत है व्यक्ति की मानसिकता, वृत्ति, व्यवहार, चरित्र और आदतों को सकारात्मक, स्वस्थ, स्वच्छ और आशावादी बनाने की, क्योंकि स्वस्थ चिंतन से स्वच्छ वृत्ति, स्वस्थ प्रवृत्ति, स्वच्छ वातावरण और स्वस्थ प्रकृति बनती है। मूल रूप से स्वस्थ मन ही स्वस्थ तन, स्वस्थ जीवन, स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का आधार है। असल में, तन-मन को स्वस्थ बनाने के लिए कोई बाहरी साधन या संसाधन की आवश्यकता नहीं है।
जैसे एक वृक्ष की आत्मा उसका बीज है जिससे पेड़ का जन्म, विकास और विस्तार हुआ है। ऐसे ही हर प्राणी का मूल अस्तित्व उसकी आत्मा है। जैसे बीज वृक्ष की शक्ति का स्रोत है, वैसे ही हर इंसान के मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक शक्ति, स्वास्थ्य और अभिवृद्धि का स्रोत उसकी अंतरात्मा है। आत्मा में निहित ज्ञान, गुण और विशेषता का चिंतन ही स्वास्थ्य की कुंजी है।

(लेखक-प्रो. शरद नारायण खरे )

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