नई दिल्ली । कांग्रस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि 2014 के पहले 'मॉब लिंचिंग' शब्द सुनने को नहीं मिलता था। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राहुल की बात को नकारते हुए जोरदार पलटवार किया और सिख विरोधी दंगे सहित कांग्रेस शासन काल में हुए कई कत्लेआम गिना डाले। कांग्रस और बीजेपी में चल रहे आरोप-प्रत्यारोप से अलग आखिर सच्चाई क्या है? क्या सचमुच 2014 के बाद ही देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं शुरू हुईं, या फिर देश में पहले भी भीड़ का खौफनाक चेहरा दिखता रहा है? 2010 से 2017 के बीच मीडिया रिपोर्ट्स के विश्लेषण से पता चलता है कि 2014 से पहले भी मॉब लिचिंग की दर्जनों घटनाएं हुई हैं। 2010 से 2017 के बीच कम से कम ऐसी 63 घटनाएं मीडिया की सुर्खियों में आईं और जाहिर सी बात है 'मॉब लिंचिंग' उस समय भी देश के सामने एक गंभीर समस्या थी। चोरी के शक, सांप्रदायिक हिंसा, ऑनर किलिंग और गौ रक्षा जैसे मुद्दों पर भीड़ ने आरोपियों को पीट-पीटकर मार डाला। बता दें अप्रैल 2014 तक देश में कांग्रेस की सरकार की थी। अप्रैल 2011 में मणिपुर के थोबाल जिले के सोरा गांव में जिला परिषद सदस्य की हत्या के बाद आक्रोशित लोगों ने आरोपी माजिबुलाह और उसकी पत्नी नूरसाना की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। 2012 में गुड़गांव के पास मानेसर में मारुति फैक्ट्री में जीएम की मॉब लिंचिंग की घटना को दुनियाभर में मीडिया ने जोरशोर से उठाया। मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच विवाद के बाद भीड़ ने प्लांट में आगजनी की और एचार मैनेजर अवनीश देव की पीट-पीटकर जान ले ली थी। 30 जून 2012 को असम में 33 वर्षीय कांग्रेस की महिला विधायक और उनके पति की मॉब लिंचिंग हुई थी। कांग्रेस नेता रूमी नाथ ने धर्मांतरण के बाद एक मुस्लिम से शादी कर ली थी, जिससे नाराज होकर करीब 100 लोगों ने दंपत्ति पर हमला कर दिया था। हमले में दोनों बुरी तरह घायल हो गए थे। मार्च 2013 में यूपी के कुंडा में डीएसपी जिया उल हक की मॉब लिंचिंग हुई थी।
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2014 से पहले सुनने को नहीं मिलता था मॉब लिंचिंग शब्द, राहुल गांधी