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इंदिरा गांधी के मुरीद थे अटल बिहारी वाजपेयी ! 

इंदिरा गांधी के मुरीद थे अटल बिहारी वाजपेयी ! 

विपक्ष में रहकर सत्तापक्ष की नेता   इंदिरा गांधी को दुर्गा के रूप में सम्मान देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को भी न सिर्फ इंदिरा गांधी से बल्कि राजीव गांधी से भरपूर सम्मान मिला।क्योंकि
भारतीय राजनीति मे एक मात्र अटल बिहारी वाजपेयी ही ऐसे  नेता रहे है ,जो सत्तापक्ष व विपक्ष दोनो के लिए सम्मानीय रहे।  अटल देश के लिए प्रेरणा का माध्यम बने रहे।उन्होंने राजनीति की एक बड़ी पारी खेली और पांच पीढ़ियों तक के सहभागी बने थे।जीवन पर्यन्त कुंवारा रहे अटल बिहारी वाजपेयी उन कुंवारे राजनेताओ के लिए आशा की किरण रहे जो उनके अनुसार ही राजनीतिक सफलता चाहते थे। सन 1957 की लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ़ चार सांसद थे। इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया।
तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि वो किसी भारतीय जन संघ नाम की पार्टी को नहीं जानते।अटल बिहारी वाजपेयी भी उन चार सांसदों में से एक थे।
आज उसी भारतीय जनसंघ की उत्तराधिकारी भारतीय जनता पार्टी के देश मे सबसे ज़्यादा सांसद हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने भाजपा का नाम न सुना हो। लेकिन सच यह भी है कि भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए । नेहरु-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओँ में शामिल रहा, जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बलबूते पर सरकार बनाई थी। 
एक अध्यापक के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया ( अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी।
उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरु किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया।सन 1951 में वे भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे। अपनी कुशल कार्य शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया था।  लखनऊ में एक बार लोकसभा उप चुनाव में वह हार भी गए थे। सन1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था।लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वह दूसरी लोकसभा में पहुंचे।
सन 1968 से 1973 तक वे भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया था।
सन 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया था।इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वे इसे अपने जीवन का  सबसे सुखद क्षण बताते थे।सन 1980 से 1986 तक वे भाजपा के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वे बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी  नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक वे संसद मे लगातार बने रहे, लेकिन बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही। ख़ासतौर से 1984 में जब वह ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे।
सन1962 से 1967 और 1986 में वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
16 मई 1996 को वे पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद सन1998 तक वे लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे।
सन1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।
सन1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। इस तरह वाजपेयी को लगातार तीन बार देश का प्रधानमन्त्री बनने का अवसर मिला।प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू से लेकर पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी व राजीव गांधी भी अटल बिहारी वाजपेयी का बहुत सम्मान करते थे।विपक्ष के नेता के रूप मे अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी सफल विदेश नीति के लिए उन्हें संसद मे दुर्गा कहकर उनका सम्मान किया था।वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचते थे।उनकी इसी सोच ने उन्हें बड़ा और सबका चेहता बनाया।तभी तो आज भी उन्हें याद किया जाता है।
(लेखक- डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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