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सर्द हवाओं के दोहे

सर्द हवाओं के दोहे

सर्द हवाओं के दोहे 
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सर्द हवाएँ चल रहीं, फैला है आतंक।
जाड़े ने ढाया कहर, मार रहा है डंक।।

कुहरे ने सब कुछ ढँका, सूझे भी नहिं हाथ।
स्वेटर,कंबल दे रहे, बस मानव का साथ।।

जनजीवन सब सुस्त है, सड़कें हैं सुनसान।
सर्द हवाएँ श्राप हैं, मौसम है हैवान।।

बर्फीली चलती हवा, मार रही है तीर।
कौन सुनेगा आदमी, को होती जो पीर।।

चाय,गर्म का दौर है, भाते बहुत लिहाफ।
नहीं करेगा कोय भी, इस सर्दी को माफ।।

सर्द हवाओं ने किया, अब दुनिया पर राज।
सारे जग के हो गए, मंद सभी अब काज।।

नींदेें लम्बी हो गईं, बिस्तर हैं आबाद।
सुबह देर से दिन शुरू, सोना ज़िंदाबाद।।

सर्द हवाएँ रिपु बनीं, उत्पीड़न में लीन।
फुटपाथों के आदमी, हुए आज तो दीन।।

सर्द हवाएँ जोश में, दिखा रहीं उत्साह।
अब पीड़ित इंसान की, बंद हुई हर राह।।

सर्द हवाओं से डरा, काँप रहा दिनमान।
चाहत तीखी धूप की, ताप बना अरमान।।

         -लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

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