नई दिल्ली। सिनेमा और रंगमंच समाज का दर्पण होते हैं। इनसे उम्मीद की जाती है कि कुरीतियों के उन्मूलन में समाज हित में ये योगदान देंगे। समाज सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में भारतीय फिल्मों ने योगदान दिया भी है, लेकिन पिछले दो दशकों में इसके प्रति हमारी अपेक्षाओं को धक्का लगा। बालीवुड की द्विअर्थी संवाद वाली अश्लीलता परोसती फिल्मों ने हमारी सांस्कृतिक मूल्यों पर बट्टा लगाया। फिर एक वक्त आया जब छोटे पर्दे यानी टेलीविजन पर धारावाहिकों का प्रवाह बढ़ गया। इन धारावाहिकों में पारिवारिक समस्याएं, रिश्तों में उलझन, पारिवारिक झगड़ों के विभिन्न पहलुओं का खूब चित्रण हुआ। समाज में भेदभाव और दूसरी कुरीतियों से अवगत करा कर लोगों में सामाजिक चेतना जगाई गई, लेकिन पारिवारिकता और सामाजिकता को दिखाते-दिखाते ये कब फूहड़ता और अश्लीलता में बदल गए, पता ही नहीं चला। परिवार के साथ देखे जाने वाले इन धारावाहिकों में नायक-नायिकाओं के बीच निजी पलों को खुले तौर पर दिखाया जाने लगा। प्रेम-प्रसंगों का चित्रण इस तरह किया जाने लगा है, जैसे कि अश्लीलता उसका अनिवार्य तत्व हो। अब हालत यह हो गए हैं कि अगर गलती से परिवार के साथ बैठ कर टीवी देखना पड़ जाए तो अश्लीलता के चलते लोग एक-दूसरे की बगलें झांकने लगते हैं। ‘पारिवारिक धारावाहिकों’ में अश्लील दृश्यों की इतनी भरमार हो गई कि है कि अब कुछ भी पारिवारिक नहीं रह गया। दरअसल जो मंच समाज सुधार के एक रहनुमा के तौर पर देखे जाने लगे थे, अब वही समाज को बिगाड़ने की तरफ ले जाते दिख रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि युवा हमेशा सिनेमा और टीवी सीरियल के किरदारों से प्रेरित होकर उनकी नकल उतारने की कोशिश करते हैं। कपड़े से लेकर उनके हेयर स्टाइल को भी लोग अपनाते हैं। जब इन सीरियल के किरदारों में अश्लीलता और फूहड़ता अपनी चरम पर हो, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ रही हों, तब युवा पीढ़ी पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ना तय है। घर में छोटे बच्चे भी इन धारावाहिकों को देखते हैं। ये युवा और बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं। भविष्य में हमारे समाज की बागडोर इन्हीं के हाथों में जाने वाली है। ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि आखिर हम कैसा समाज चाहते हैं। ऐसा समाज जहां लोग बेहतर सोच और बेहतर वातावरण में जीकर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकें या फिर ऐसा समाज जिसमें लोग सिनेमा-टेलीविजन से हासिल होने वाले बुरे विचारों से ग्रस्त हों। जाहिर है हम पहला वाला ही चुनेंगे। सरकार के अलावा समाज के तौर पर हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम ऐसी फिल्मों या धारावाहिकों के खिलाफ आवाज उठाएं जिनसे समाज में अश्लीलता को बढ़ावा मिल रहा हो।
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समाज में अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली फिल्मों और धारावाहिकों के खिलाफ उठानी होगी आवाज