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ऑटो सेक्टर की सुस्ती से पस्त हुए छोटे सप्लायर यूनिट

ऑटो सेक्टर की सुस्ती से पस्त हुए छोटे सप्लायर यूनिट

 देश के ऑटो क्षेत्र पर आर्थिक मंदी के चलते वाहनों की बिक्री में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। अब बड़ी कंपनियों को छोटे-मोटे पार्ट्स सप्लाई करने वाली छोटी यूनिटों पर भी दिखने लगा है। ऑर्डर में कमी के साथ ही इन इकाइयों को भुगतान में भी देरी होने लगी है, जिससे उनके लिए काम जारी रखना मुश्किल हो रहा है। हालात जल्द सुधरने से नाउम्मीद नोएडा, फरीदाबाद, दिल्ली की कई इकाइयां वर्कर्स की छंटनी कर रही हैं और कुछ ने ताला भी जड़ दिया है। फरीदाबाद स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राजीव चावला ने बताया कि सेक्टोरल स्लोडाउन अब टियर-2 और टियर-3 कंपोनेंट कंपनियों पर भारी पड़ने लगा है। कई लागतें स्थायी हैं, जिन्हें टाला या घटाया नहीं जा सकता। लेकिन ऑर्डर में कमी के साथ ही पेमेंट साइकल बद से बदतर होता जा रहा है। हालात जल्द नहीं सुधरे तो बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का संकट खड़ा हो सकता है।
कई बड़े कार ओईएम के लिए इलेक्ट्रिकल्स फिटिंग्स बनाने वाले नॉवेल्टी मूवर्स के मालिक चितरंजन अग्रवाल ने बताया कि बड़ी कंपनियों के सामने बीएस-6 में शिफ्टिंग और जीएसटी जैसी चुनौतियां हैं, लेकिन उनकी ओर से ऑर्डर घटने से छोटे मैन्युफैक्चरर्स के लिए कई नई मुश्किलें पैदा हो रही हैं। मैं जिस ओईएम को बीते तीन साल से सप्लाई कर रहा हूं, उसने ऑर्डर में 60फीसदी तक कटौती कर दी है। लेकिन मैं चाहकर भी किसी और से ऑर्डर नहीं ले सकता, क्योंकि मुझे अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बदलना होगा और इसके लिए एकमुश्त रकम चाहिए। फिलहाल ओईएम की ओर से हमारा भुगतान छह से आठ महीने तक लंबित हो रहा है, जबकि आम तौर पर यह दो-तीन महीने था।
नोएडा में हल्के कमर्शियल वाहनों के लिए मोल्डिंग बनाने वाली एक कंपनी के एमडी ने बताया कि ऑर्डर में कमी से उन्होंने अपने आधे से ज्यादा टियर-3 सप्लायर्स को भी ऑर्डर बंद कर दिया है, जिनमें से कई बंद होने के कगार पर हैं। अगर अगले कुछ महीनों में बिक्री नहीं सुधरी तो उन्हें भी वर्कफोर्स घटानी पड़ सकती है। ऑटो कंपोनेंट वेंडर्स और डीलर्स पर भी मंदी का असर हो रहा है, लेकिन अभी उनका कारोबार पुरानी गाड़ियों की रिप्लेसमेंट डिमांड पर टिका हुआ है। कश्मीरी गेट में ऑटो पार्ट मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष विष्णु भार्गव ने बताया कि बड़ी कंपनियों की बिक्री घटने से पुरानी गाड़ियों की रिप्लेसमेंट डिमांड तो बढ़ी है, लेकिन यह ट्रेंड अस्थायी है और अगर नई गाड़ियों की मंदी लंबी खिंची तो कंपोनेंट डीलर्स की हालत भी खराब हो सकती है। उन्होंने कहा कि 28फीसदी जीएसटी रेट ने माहौल सबसे ज्यादा बिगाड़ा है। इसका असर पूरी सप्लाई चेन पर पड़ा है। इसके अलावा सेक्टर में तकनीकी बदलावों को लेकर भी बाजार सकते में है। 

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