देश में घुटने बदलने की सर्जरी में 'गोल्डन नी इंप्लांट' का उपयोग तेजी से बढ़ने लगा है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि गोल्डन नी इंप्लांट का इस्तेमाल होने के कारण मरीजों को दोबारा घुटने की सर्जरी कराने की जरूरत नहीं होती। धातु के परम्परागत इंप्लांट में एलर्जी के कारण इंप्लांट के खराब होने का खतरा होता था जिससे कई मरीजों को दोबारा घुटना बदलवाना पड़ता था लेकिन गोल्डन नी इंप्लांट में एलर्जी का खतरा नहीं होता और साथ ही यह इंप्लांट 30 से 34 साल तक चलता है जिसके कारण यह कम उम्र के मरीजों के लिए भी उपयोगी है।
परंपरागत इंप्लांट की तुलना में 'गोल्डन नी इंप्लांट' बहुत सस्ता है और जिन्हें घुटना बदलवाने की सर्जरी की जरूरत है, वे आसानी से इसके खर्च को वहन कर सकते हैं। इस इंप्लांट के कारण मरीज घुटने को पूरी तरह से मोड़ सकते हैं, पालथी मार कर बैठ सकते हैं, झुक सकते हैं और आराम से सीढ़ियां भी चढ़ सकते हैं।
भारतीयों की जरूरत के हिसाब से मल्टी रेडियल टाईबेनियम युक्त गोल्ड नी का डिजाइन तैयार किया गया है। यह नया नी इंप्लांट प्राकृतिक घुटने की तरह काम करेगा। इसे लगवाने के बाद घुटने मोड़ने एवं पालथी मारने कर देर तक बैठने में भी दिक्कत नहीं होगी।
अभी जो इंप्लांट लगते हैं उनके रोटेटिंग प्लेटफार्म में टिश्यू चिपकने से चलने फिरने में दिक्कत होती थी। अब नए इंप्लांट में मल्टी रेडियल टाईबेनियम का इस्तेमाल हुआ है। इसके दोनों अलग डिजाइन के हैं। इसमें यूनी एक्सियल विटामिन ई समायोजित पॉली इंसर्ट का इस्तेमाल हुआ है जो एंटी आक्सीडेंट है।
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गोल्डन नी इंप्लांट में दोबारा सर्जरी की जरुरत नहीं