व्रत से अभिप्राय नियम, कानून अथवा अनुशासन से है। जिस जीवन में अनुशासन का अभाव है वह जीवन निर्बल है। नीति का मतलब है जीवन अस्त-व्यस्त न हो, शांत और सबल हो। नीति के अनुसार व्रत पालन से अद्भुत बल की प्राप्ति होती है। रावण के विषय में विख्यात है कि वह दुराचारी था किंतु वह अपने जीवन में एक प्रतिज्ञा से आबद्ध था। उसका व्रत था कि वह किसी नारी का बलात्कार नहीं करेगा, उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं भोगेगा यही कारण था वह सीता को हरण करके ले तो आया किंतु उसका शील भंग नहीं कर पाया। इसका कारण केवल उसका व्रत था, उसकी प्रतिज्ञा थी। यद्यपि यह सही है कि सीताजी के साथ बलात्कार का प्रयास भी करता तो भस्मसात हो जाता किंतु ऐसा करने से उसकी प्रतिज्ञा ने उसे रोक लिया। निरतिचार शब्द बडे मार्के का शब्द है।
व्रत के पालन में कोई गड़बड़ी न हो तो आत्मा और मन पर एक ऐसी छाप पडती है कि खुद का तो निस्तार होता ही है, अन्य भी जो इस व्रत और व्रती के सम्पर्क में आ जाते हैं, वे भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। जैसे कस्तूरी को अपनी सुगन्ध के लिये किसी तरह की प्रतिज्ञा नहीं करनी पड़ती, उसकी सुगन्ध स्वत? चारों ओर व्याप्त हो जाती है, ऐसे ही इस व्रत की महिमा है। आज हम मात्र शरीर के भरण-पोषण में लगे हैं। व्रत, नियम और अनुशासन के प्रति भी हमारी रुचि होनी चाहिये। अनुशासन विहीन व्यक्ति सबसे गया-बीता व्यक्ति है। अरे भैया! तीर्थंकर भी अपने जीवन में व्रतों का निर्दोष पालन करते हैं। हमें भी करना चाहिये। हमारे व्रत ऐसे हों जो स्वयं को सुखकर हो और दूसरों को भी सुखी करें।
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(चिंतन-मनन) व्रत पालन से ही जीवन में मिलती है सफलता