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 मंदिरों में भगदड़ की घटनाएं और बेमौत मरते श्रध्दालू ? 

 मंदिरों में भगदड़ की घटनाएं और बेमौत मरते श्रध्दालू ? 

 नव वर्ष 2022 पर वैष्णो देवी के दर्शन के लिए भवन पर उमड़ी भारी भीड़ से भगदड़ मच गई।दर्दनाक मंजर था।लाशों के ढेर लग गए।दर्जनों लोग बेमौत मारे गए।कैसी विडंबना है कि मनोकोमना के लिए गए श्रध्दालूओं को मनोकोमना के बदले मौत की सौगात मिली।यह बहुत ही दुखद हादसा है। ताजा घटनाक्रम में शुक्रवार को आधी रात को एक तंग जगह पर दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे और वापस लौट रहे श्रघ्दालूओं में धक्का मुक्की होने के कारण स्थििति बिगड़ गई।और भगदड़ मच गई इस भगदड़ में 14 श्रध्दालूओं की दर्दनाक मौत हो गई तथा 16 श्रध्दालू घायल हो गए।वैष्णो देवी में यह पहला हादसा हुआ है। आधाी रात को चारों तरफ चीखों पुकार मच गई।लोग बदहवाश अपने बच्चों को ढंूढ रहे थे।श्रध्दालू दब रहे थे। देश के मदिरों में भगदड़ की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं और श्रध्दालू बेमौत मर रहे हैं।इसे प्रशासन की लापरवाही की संज्ञा दी जाए तो कोई आतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रशासन को पता था कि लाखों की तादाद में श्रध्दालू आएगें तो सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किए गए। आंकड़ों के अनुसार 3 अगस्त 2008 को हिमाचल प्रदेश के प्रसिध्द शक्तिपीठ नैना देवी में भगदड मचने से 162 लोग मारे गए थे तथा 300 घायल हुए थे। घटना के समय मंदिर में 20 से 25 हजार लोग मौजूद थे। मरने वालों में 104 लोग अकेले पंजाब के रहने वाले थे। 14 जनवरी 2011 को केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ में 106 श्रध्दालूओं की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हो गए थे। वर्ष 30 सितंबर 2008 को जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में 250 लोगों की मेोत हुई थी।2019में तमिलनाडू के मुथैयापलयम में स्थित करुपन्ना स्वामी मंदिर में भगदड़ मचने से चार महिलाओं समेत सात श्रध्दालूओं की दर्दनाक मौत हो गई थी। तथा 10 अन्य घायल हो गए थे। सिक्कों के वितरण के लिए आयोजित सामारोह पीदीकासू में अचानक भगदड़ मचने से सात महिलाएं बेमौत मारी गइ र्थी।यह बहुत ही दुखद हादसा था। वर्ष 2018 में नवरात्रि की नवमी पर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिध्द रतनगढ़ देवी मंदिर में देखने को मिला था जहां पुल टूटने की अफवाह से भगदड़ मचने के कारण 91 श्रध्दालूओं की दर्दनाक मौत हो गई थी और 150 से ज्यादा घायल हो गये थे मरने वालों में 30 बच्चे व 42 महिलाएं शामिल थी। काश प्रशासन ने पिछली घटनाओं से सबक सीखा होता तो यह हादसा न होता। मंदिरों में भगदड़ मचने का यह कोई पहला हादसा नहीं है इससे पहले सैंकडों हादसे हसे चुके है और हजारों लोग बेमौत मारे जा चुके है मगर यह हादसे कम नहीं हो रहे हैं। इन घटनाओं को हादसा नहीं हत्याऐं कहना गलत नहीं होगा। हर साल श्रध्दालू मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं, मनोकामना तो पुरी नहीं होती मगर उन्हे मौत जरुर मिलती है। आकडे बतातें है कि वर्ष 2008 में भी नवमी को भी इसी जगह पर नदी में डूबने से लगभग 100 श्रध्दालूओं की असमय मौत हो गई थी। रविवार को घटित इस मेले में लाखों श्रध्दालू आए थे बेचारे पल भर में लाशों में बदल गए। मंदिर अब आस्थास्थल न होकर मरणस्थल बनते जा रहे हैं। रविवार को मंदिर परिसर में चारों तरफ लाशों के ढेर ही नजर आ रहे थे। श्रध्दालूओं का सामान चारों तरफ बिखरा पडा था। भगदड़ में सैकडों महिलाएं ,बच्चे व बुर्जुग पैरां तले कुचल दिए गए तो कुछ की नदी में डूबने से मौत हो गई थी। ,श्रध्दालू बदहवाश होकर अपनों को ढूंढ रहे थे।मगर उनके अपने मौत की नीद सो चुके थे। मध्यप्रदेश सरकार ने भले ही हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए है मगर जो काल का गाल बन गए उसकी भरपाई कैसे होगी। सात साल पहले 2006 में भी सिंध नदी में 50 तीर्थयात्री बह गए थे। अब प्रशासन मृतकों को डेढ लाख दे रही है अगर पहले से ही सुरक्षा के इंतजाम किए होते तो यह हादसा रुक सकता था। मुआवजा समस्या का हल नहीं है। सरकारों द्वारा जो पैसा मुआवजे के रुप में दिया जाता है उससे व्यवस्था को सुधारने में लगाया होता तो आज यह नौबत न आती। आकडों पर नजर डाले तो आत्मा सिहर उठती है। 10फरवरी 2013 को इलाहाबाद में कुम्भ मेले 36 लोगों की मौत हुई थी और 39 लोग घायल हुए थे। 26 जनवरी 2005 को महरराष्ट्र के सतारा जिले के मंधेरी मंदिर में 350 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी।नवंबर 2006 में उडीसा के शंदरपुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में आरती के समय भदड़ में चार लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनो घायल हुए थे।झारखंड के देवधर के एक आश्रम में भगदड़ से 9 लोगों की मौत हो गई थी, नंवबर 2012 में बिहार में छठ पुजा के दौरान गंगा नदी के घाट पर बना बांस का पुल टुटने से लोगों में भगदड़ मचने से 20 श्रध्दालुओं की मौत हो गई थी। बार-बार हादसे हो रहे हैं मगर सरकारें मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रही है।प्रशासन तब जागता है जब लाशों के ढेर लग जाते हैं। प्रशासन को इन हादसों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। इस घटना ने प्रशासन की बदइंतजामी की पोल खोल दी हैं। इस हादसे में कई अनाथ हो गए तो माताएं व बहनों का सुहाग उजड गया।ऐसे हादसे ताउम्र रोते हुए छोड़ जातें है। छोटे बच्चे दर-दर की ठोकरें खातें हैं। केन्द्र सरकार को इन हादसों पर संज्ञान लेना चाहिए तथा दोषियो के खिलाफ कारवाई करनी चाहिए और   प्रत्येक मंदिरों  व आस्था स्थलों में आपदा से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन समितियां गठित करनी चाहिए। मंदिरो में हर वर्ष करोडो़ रूपया चढावा चढता है मगर श्रध्दालूओं की सुरक्षा रामभरोसे ही चल रही है। मंदिर कमेटियो को भी इन हादसो से सीख लेनी चाहिए। ताकि आने वाले समय में इन हृदयविदारक हादसों को रोका जा सके। अगर अब भी सबक न सीखा तो श्रध्दालूओं को मंदिरों में मौत की सौगातें मिलती रहेगी और आस्था स्थल शमशानघाट बनते रहेगें।वक्त अभी संभलने का है।
(लेखक-नरेन्द्र भारती )
 

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