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(चिंतन-मनन) प्रेम और दया से ही प्रसन्न होंगे ईश्वर

(चिंतन-मनन) प्रेम और दया से ही प्रसन्न होंगे ईश्वर

ईश्वर को खुश करने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं। मंत्र साधक लाखों बार मंत्र जप करते हैं, भक्ति मार्ग पर चलने वाले लोग मंदिर जाकर ईश्वर की पूजा करते हैं। धूप-दीप आरती से भगवान को प्रसन्न करने की भी कोशिश करते हैं। इतना करने के बाद भी यह पता नहीं होता कि ईश्वर हमें प्यार करता है या नहीं। प्रेम में सफलता तभी मिलती है जब हमें जिसे प्यार करते हैं वह हमें प्यार करे। इसलिए हमेशा ऐसा काम करें जिससे ईश्वर आपको प्यार करे। यह काम पूजा-पाठ और मंत्र जप से भी आसान है। सभी धर्म एक बात पर सहमत है कि प्रेम और दया यह दो ऐसे साधन है जिसकी बदलौत हम ईश्वर को मजबूर कर सकते हैं कि वह हमें प्यार करे। प्रेम और दया ऐसी चीज है जिसके लिए न तो धन की जरूरत पड़ती है और न ही किसी दूसरे साधनों की। यह अपने आप में पूर्ण और पवित्र है।   
हम किसी के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हैं तो बदले में हमें भी प्रेम मिलता है। इसका कारण यह है कि जिसके प्रति हम प्रेम दर्शाते हैं उसके हृदय में मौजूद आत्मा जो ईश्वर का स्वरूप होता है वह प्रसन्न होता है और बदले में हमें अपने प्रेम की अनुभूति कराता है। गीता, कुरान अथवा बाइबल सभी में दया को ईश्वर को पाने का माध्यम बताया गया है। ईश्वर को फूल, फल अथवा मंत्र से ध्यान करने का उद्देश्य भी यही है कि हमारा मन निर्मल हो और मन में दया की भावना बढ़े। जिसने दया करना सीख लिया वह ईश्वर का पुत्र हो जाता है। ईसा मसीह, भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, साईं सभी ने अपने जीवन में दया का अनुपम परिचय दिया। अपने इसी गुण के कारण ईश्वर ने इन्हें प्यार किया और ईश्वरीय शक्ति इनमें समाहित हो गयी।   
 

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