वाशिंगटन । मलेरिया के मच्छरों को कीटनाशकों से मारने में इंसानों और पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव का खतरा रहता है।इसकारण स्वीडन में शोधकर्ता इन मच्छरों के खात्मे के लिए एक नए तरीके पर काम कर रहे हैं। स्टॉकहोम की एक प्रयोगशाला में मच्छरों से भरे हुए पिंजरे रखे हुए हैं। मच्छरों को पिंजरों के अंदर बंद रखने के लिए उन पर महिलाओं के टाइट्स चढ़ाए गए हैं। मलेरिया से लड़ने की एक बड़ी योजना के तहत इन मच्छरों को रोज घातक विष मिलाकर चुकंदर का जूस दिया जा रहा है।शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि मलेरिया फैलाने वाले एनोफेलीज मच्छर को मारने के लिए उन्होंने एक ऐसा तरीका खोज निकाला है जो पर्यावरण के अनुकूल है।ये शोधकर्ता इतने आशान्वित हैं कि उन्होंने अपनी खोज को व्यावसायिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए कंपनी की स्थापना कर ली है।
शोधकर्ता कहती हैं कि ये एक पालतू पशु या पक्षी रखने जैसा है, लेकिन फर्क इतना है कि पालतू पशुओं को इस तरह धोखे से जहरीले शरबत नहीं पिला सकते है।वहां बताती हैं इन मच्छरों को धोखा देने के लिए जूस में एक ऐसा मॉलिक्यूल मिलाया जाता है जो इन मच्छरों को आकर्षित करता है।किसी भी सॉल्यूशन में इस मॉलिक्यूल को मिलाने से वहां सॉल्यूशन मच्छरों के लिए काफी स्वादिष्ट हो जाता है।
यह मॉलिक्यूल तब निकलता है, जब मलेरिया फैलाने वाला परजीवी शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करता है। शोधकर्ता एक विशालकाय फ्रिज को खोलती हैं, जिसमें 27 डिग्री सेल्सियस तापमान बरकरार रखा गया है। फ्रिज में पानी से भरे हुए डिब्बे में मच्छरों के डिम्भक (लार्वा) कुलबुला रहे हैं।इस मॉलिक्यूल को विषों में मिलाकर फिर विष को चुकंदर के जूस में मिला देने से मच्छर पीते हैं और मर जाते हैं।उन्होंने बताया, "मच्छरों को मारने का सबसे अच्छा तरीका अभी भी कीटनाशक हैं, लेकिन हमें मालूम है कि कीटनाशक ना सिर्फ मच्छरों को बल्कि दूसरे कीड़ों और अन्य जीवों को भी मार रहे हैं कीटनाशकों की प्रभावित कम होने के भी सबूत सामने आ रहे हैं।
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