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श्री अभिनंदननाथ भगवान का ज्ञान कल्याणक (१६ जनवरी २०२२)  परिचय

श्री अभिनंदननाथ भगवान का ज्ञान कल्याणक (१६ जनवरी २०२२)  परिचय

 जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर एक मंगलावती देश है उसके रत्नसंचय नगर में महाबल राजा रहता था। किसी दिन विरक्त होकर विमलवाहन गुरू के पास दीक्षा लेकर ग्यारह अंग का पठन करके सोलहकारण भावनाओं का चिन्तवन किया, तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके अन्त में समाधिमरणपूर्वक विजय नाम के अनुत्तर विमान में तेतीस सागर आयु वाला अहमिन्द्र देव हो गया।
 गर्भ और जन्म
 इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अयोध्या नगरी के स्वामी इक्ष्वाकुवंशीय काश्यपगोत्रीय ‘स्वयंवर' नाम के राजा थे, उनकी ‘सिद्धार्था' महारानी थी। माता ने वैशाख शुक्ला षष्ठी के दिन उस अहमिन्द्र को गर्भ में धारण किया और माघ शुक्ला द्वादशी के दिन उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया। सौधर्म इन्द्र ने देवों सहित मेरू पर्वत पर जन्म महोत्सव मनाया और भगवान का ‘अभिनन्दननाथ' नाम प्रसिद्ध करके वापस माता-पिता को सौंप गये। उनकी आयु पचास लाख पूर्व और ऊँचाई साढ़े तीन सौ धनुष की थी।
 ज्ञान और तप
 कुमार काल के साढ़े बारह लाख पूर्व वर्ष बीत जाने पर राज्य पद को प्राप्त हुए, राज्य काहस्तल के साढ़े छत्तीस लाख पूर्व वर्ष व्यतीत हो गये और आठ पूर्वांग शेष रहे तब वे एक दिन आकाश में मेघों का महल नष्ट होता देखकर विरक्त हो गये और देवनिर्मित ‘हस्तचित्रा' नामक पालकी पर आरूढ़ होकर माघ शुक्ला द्वादशी के दिन बेला का नियम लेकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा धारण कर ली, उसी समय उन्हें मन:पर्यय ज्ञान प्रगट हो गया। पारणा के दिन साकेत नगरी के राजा इन्द्रदत्त ने भगवान को क्षीरान्न का आहार कराया और पंचाश्चर्य को प्राप्त किया।
 केवलज्ञान और मोक्ष
छद्मस्थ अवस्था के अठारह वर्ष बीत जाने पर दीक्षा वन में असन वृक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए। पौष शुक्ल चतुर्दशी के दिन शाम के समय पुनर्वसु नक्षत्र में उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इनके समवशरण में वङ्कानाभि, आदि एक सौ तीन गणधर, तीन लाख मुनि, मेरुषेणा आदि तीन लाख तीस हजार छह सौ आर्यिका, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ, असंख्यातों देव-देवियाँ और संख्यातों तिर्यंच बारह सभा में बैठकर धर्मोपदेश श्रवण करते थे।
 इन अभिनन्दननाथ भगवान ने अन्त में सम्मेदशिखर पर पहुँचकर एक महीने का प्रतिमायोग लेकर वैशाख शुक्ला षष्ठी के दिन प्रात:काल के समय अनेक मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया। इन्द्रों के द्वारा किये गये सारे वैभव यहाँ भी समझना चाहिए।
 पिछले भगवान संभवनाथ अगले भगवान सुमतिनाथ चिन्ह बंदर
पिता महाराज स्वयंवरराज माता महारानी सिद्धार्था वंश इक्ष्वाकु वर्ण क्षत्रिय
अवगाहना 350 धनुष (चौदह सौ हाथ) देहवर्ण तप्त स्वर्ण सदृश आयु 5,000,000 पूर्व वर्ष वृक्ष सहेतुक वन एवं असन वृक्ष
प्रथम आहार साकेत नगरी के राजा इन्द्रदत्त द्वारा (खीर)
 पंचकल्याणक तिथियां गर्भ वैशाख शु. ६ जन्म माघ शु. १२ अयोध्या (उत्तर प्रदेश) दीक्षा माघ शु. १२ केवलज्ञान पौष शु. १४
मोक्ष वैशाख शु.६ सम्मेद शिखर
 समवशरण गणधर श्री वज्रनाभि आदि १०३ मुनि तीन लाख गणिनी आर्यिका मेरुषेणा आर्यिका तीन लाख तीस हजार छह सौ
श्रावक तीन लाख श्राविका पांच लाख यक्ष यक्षेश्वर देव यक्षी वज्रश्रृंखला देवी
 पौष शुक्ल चौदश तिथि जिनवर, असनवृक्ष तल तिष्ठे।
 बेला करके शुक्ल ध्यान में, घातिकर्म रिपु दग्धे।।
 केवलज्ञान ज्योति जगते ही, समवसरण की रचना।
 अर्घ चढ़ाकर पूजत ही मैं, झट पाऊँ सुख अपना।।४।।
 ॐ ह्रीं पौषशुक्लाचतुर्दश्यां श्रीअभिनंदननाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घं निर्वपमामीति स्वाहा।
 (लेखक - विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
 

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