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 भारत की प्राकृतिक कृषि की ज़रूरत को पूरे विश्व को स्वीकारना ही पड़ेगा: मंत्री अमित शाह 

 भारत की प्राकृतिक कृषि की ज़रूरत को पूरे विश्व को स्वीकारना ही पड़ेगा: मंत्री अमित शाह 

नई दिल्ली । केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज गुजरात के कलोल में प्राकृतिक कृषि का लोगो, एफपीओ के माध्यम से कृषि उपज की बिक्री के लिए प्राकृतिक गुजरात मोबाइल एप्प और कृषि उपज की बिक्री के लिए ई-व्हीकल लॉन्च किया। इस अवसर पर गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि देश के आज़ाद होने के बाद आबादी बढ़ती गई लेकिन सिंचाई और वैज्ञानिक कृषि का अभाव रहा और इसी के कारण देश के सामने बहुत बड़ा संकट आया कि देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था। दुनिया के बड़े बड़े देश खराब गुणवत्ता के गेहूं और चावल देने के लिए शर्तें रखते थे। इसी कारण भारत में हरित क्रांति शुरू हुई और इसके आरंभ से ही रासायनिक खाद का उपयोग शुरु हुआ और देश आत्मनिर्भर हो गया। लेकिन हर दस साल में हर समाज को अपनी पद्धतियों की समीक्षा करनी चाहिए कि हमारी जरूरतें बदली हैं या नहीं, ज़रूरतें पूरी करने के कोई खराब परिणाम तो नहीं मिल रहे, इस प्रकार का स्वमूल्यांकन करना चाहिए। ऐसा देखने में आया कि भारत में रासायनिक खाद के अधिक उपयोग के कारण ज़मीन बंजर होती जा रही है और केमिकल्स के ज्यादा उपयोग से भूमिगत जलस्त्रोत भी दूषित होने शुरू हो गए। इस संकट को पहचानने का काम सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया। उन्होंने ऐसे विकल्प ढूंढने की शुरूआत की जिनसे रासायनिक खाद का उपयोग बंद हो, कृषि की पैदावर भी अधिक हो, पानी की ज़रूरत कम हो और किसान समृद्ध बनें। यह चारों चीज़ें इकट्ठा होने पर ही हम एक नई हरित क्रांति की शुरुआत कर सकते हैं, जो प्राकृतिक कृषि से सृजित हो और आने वाले कई सालों तक भूमि को खराब करने की बजाय भूमि का संरक्षण और संवर्धन करे और ऐसा करने का एकमात्र मार्ग प्राकृतिक कृषि ही है। अमित शाह ने कहा कि देश के वैज्ञानिकों ने ये प्रमाणित किया है कि प्राकृतिक कृषि भूमि को ख़राब होने से बचाती है, इससे अनाज, फल, दाल, तेल, गेहूं आदि में रासायनिक पदार्थ की मात्रा कम होती है, हमारा स्वास्थ्य अच्छा होता है, कृषि की पैदावर बढ़ती है, किसान की समृद्धि बढ़ती है, पानी का उपयोग कम होता है और भूमि उर्वरक बनती है। आचार्य देवव्रत जी के नेतृत्व में ये अभियान शुरू करना तय हुआ था। आचार्य देवव्रत जी हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने और वहां उन्होंने किसानों तक यह प्रयोग पहुंचाना शुरू किया। इसके बाद जो अनुभव हुए, उस पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से चर्चा की। जब वे गुजरात के राज्यपाल बने तो उन्होंने यहां भी इस अभियान की शुरूआत की। कोरोनाकाल के दौरान भी उन्होंने दो लाख से अधिक किसानों में और ढाई लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि पर इसकी शुरूआत की। इतने बड़े पैमाने पर भूमि की कृषि पद्धति बदलने में कई दशक लग जाते हैं, लेकिन यहां सिर्फ दो साल में यह परिवर्तन आया, जिसका मतलब है कि गुजरात के किसानों ने इसके लाभ को पहचाना, स्वीकारा और अपने साथियों को भी इसके लिए प्रेरित किया। गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि इस पूरे अभियान को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 16 दिसंबर के दिन पूरे देश के आठ करोड़ किसानों के सामने रखा था और उन्होंने यह बात बहुत आसानी से समझ ली। कई किसानों ने अपनी कृषि पद्धति को बदलना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री जी ने यह भी बताया कि अगर आपके पास 10 एकड़ भूमि है, तो दो एकड़ से शुरुआत करिए और बाद में और दो एकड़ बढ़ाइए, लेकिन इसकी शुरूआत करनी ही होगी। अगर अन्नदाता ही भविष्य, पृथ्वी और देश के बारे में नहीं सोचेगा तो हम भयानक संकट की ओर बढ़ जायेंगे। उन्होंने कहा कि गुजरात में भूमिगत जलस्तर 1000 से 1200 फीट नीचे चला गया है और हम आज आनेवाली सात पीढ़ियों का पानी पी रहे हैं, हमें इस बात के प्रति जागरुक होना चाहिए और इसके चलते नई पद्धति को सीखने और स्वीकारने की उत्सुकता भी बढ़ानी होगी। मैंने गांधीनगर लोकसभा क्षेत्र के सांसद के तौर पर तय किया है कि यहां कम से कम 50 प्रतिशत किसान प्राकृतिक कृषि को स्वीकार करें और इस दिशा में कार्यरत होना मेरा फर्ज है।
 

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