गौतम बौद्ध नगर । बसपा के लिए इस बार का विधानसभा-2022 का चुनाव काफी अहम माना जा रहा है। अहम इसलिए कि बसपा नई टीम के सहारे मैदान में है। वहीं इस बात की परीक्षा होगी कि उसके विधायक चाहे जहां चले जाएं बसपा का कॉडर आज भी मजबूत है या नहीं। साथ ही इस चुनाव में तय होगा कि क्या दलित आज भी मायावती को ही अपना नेता मानता है। सियासी दल मायावती को रेस से बाहर बताने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, मायावती ने इसका हर मौके पर खंडन किया है। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है दलित वोट बैंक में बंटवारा होगा। इस वोट बैंक पर सभी दलों की नजर है। खासकर भाजपा व सपा की। बसपा अपने कॉडर के साथ ही सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला भी अपना रही है। इसके तहत दलितों के साथ ही ब्राह्मण, मुस्लिम, ओबीसी वोट बैंक पर खास ध्यान दिया जा रहा है। वर्ष 2007 में इसी फार्मूले पर चलकर बसपा 206 सीटें जीती थी और यूपी में अपने दम पर सरकार बनाई थी। उस समय टिकट बंटवारे में सर्वाधिक 139 टिकट सवर्णों को दिए गए थे। इसमें 86 ब्राह्मण थे। दूसरे नंबर पर 114 अन्य पिछड़ी जाति के उम्मीदवार उतारे गए थे। बसपा इस बार भी इसी फार्मूले पर चलकर टिकट बंटवारे का काम कर रही है। देखना होगा कि उसका फार्मूला इस बार कितना कामयाब होता है। बसपा में भले ही सभी जातियों के नेता हैं, लेकिन सभी अहम पदों पर कॉडर के ही लोग हैं। बसपा में कॉडर का मतलब दलित है। मायावती इसी कॉडर की रिपोर्ट पर अपना फैसला लेती हैं। चाहे टिकट देना हो या फिर पार्टी में जिम्मेदारी ,सबमें अहम कॉडर है। बसपा से भले ही कई बड़े नेता दूसरी पार्टियों में गए हों, मगर कॉडर के नेता कहीं नहीं गए हैं। मायावती कई मौकों पर यह साफ भी कर चुकी हैं कि उनका कॉडर उनके पास है। जो गया भी है गैर कॉडर का है। बसपा को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 19 सीटों पर जीत मिली थी। इसमें से अधिकतर विधायक मौजूदा समय बसपा को छोड़ कर दूसरे दलों में जा चुके हैं। बसपा के पास नाम मात्र के विधायक बचे हैं। इसलिए बसपा पर सबसे बड़ी चुनौती इस चुनाव में अधिक सीटें जीतने के साथ ही अपना वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने की है।
रीजनल नार्थ
मायावती की नई टीम और कड़ी चुनौती