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 ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को ओबीसी की सूची में शामिल करने की तैयारी, एनसीबीसी ने किया विरोध 

 ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को ओबीसी की सूची में शामिल करने की तैयारी, एनसीबीसी ने किया विरोध 

नई दिल्ली । केंद्र सरकार ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) की सूची में शामिल करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।इससे ट्रांसजेडर्स भी ओबीसी आरक्षण के तहत सरकारी नौकरियों, शिक्षा आदि के अवसरों का लाभ उठा सकते है। खबर है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इसबारे में कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है।इस केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान विचार के लिए पेश होना है। हालांकि इससे पहले ही इसका विरोध शुरू हो चुका है।
खबर के मुताबिक ट्रांसजेडर समुदाय के लिए ओबीसी आरक्षण के प्रस्ताव का विरोध किसी और ने नहीं बल्कि राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने किया है।एनसीबीसी के अधिकांश सदस्यों का तर्क है कि मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्गों के निर्धारण के लिए जो मानदंड तय किए थे, सरकार का यह प्रस्ताव उनका उल्लंघन करता है। उनका यह तर्क है, कि ट्रांसजेंडर्स को ओबीसी के तहत अलग समूह नहीं माना जा सकता। 
एनसीबीसी के सदस्यों के मुताबिक ट्रांसजेंडर्स को उन जाति-समूहों में शामिल मानना चाहिए,जिसमें वे पैदा हुए हैं। जैसे कि अगर किसी ट्रांसजेंडर का जन्म अनुसूचित जाति वाले परिवार में हुआ है,तब उस एससी माना जाए।इसके तहत आरक्षण लाभ दिया जाए।इसी तरह अगर कोई ट्रांसजेंडर अनुसूचित जनजाति में है,तब उसके तहत, इन्हीं में से अगर किसी का जन्म ओबीसी परिवार में हुआ है,तब उस इस श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। एनसीबीसी के सदस्यों का कहना है कि ट्रांसजेंडर्स कोई जाति नहीं हैं।बल्कि लिंग हैं। जाति वह है, जिसमें उनका जन्म हुआ। जाति का निर्धारण जन्म से हो जाता है।इसकारण जो जिस जाति में पैदा हुआ है, उसी के तहत उस आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।’ बताया जाता है कि एनसीबीसी के अधिकांश सदस्यों का यह भी मानना है कि अगर ट्रांसजेंडर्स को ओबीसी के तहत अलग समुदाय मान लिया गया तो इससे अन्य वर्गों के हितों को नुकसान होगा।
हालांकि एनसीबीसी की सदस्य सुधा यादव के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने सरकार को प्रस्ताव का समर्थन किया है।उन्होंने प्रस्ताव को ‘प्रगतिशील’ बताते हुए दलील दी है कि पूरे देश में महज कुछ लाख की आबादी ही ट्रांसजेंडर्स की है।इन्हें ओबीसी के तहत अलग समुदाय का दर्जा दे भी दिया जाता है, तब करोड़ों की तादाद वाली अन्य जातियों के हितों पर कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा। 
 

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