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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कम्यूनिटी किचन की व्यवस्था करे सरकार  -तय करे कि भूख से कोई न मरे, भूख से मौतों पर की सरकार की बोलती बंद

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कम्यूनिटी किचन की व्यवस्था करे सरकार  -तय करे कि भूख से कोई न मरे, भूख से मौतों पर की सरकार की बोलती बंद

नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट को जब बताया गया कि देश में कोई भूखा है ही नहीं, तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा, देश-दुनिया के सर्वे डेटा चीख रहे हैं कि भारत में न केवल भूख की समस्या है, बल्कि इतनी गहरी है कि भूख से लोगों की जानें जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो कम्यूनिटी किचन की व्यवस्था करे और तय करे कि कोई भी भूख से न मरे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के रवैये पर हैरत जताई और अंग्रेजी में कहा,यू एक्सेप्ट अस टू विलीव इट! अंग्रेजी के इन्हीं पांच शब्दों में मिली फटकार से बैकफुट पर आए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने तुरंत इसका ठीकरा राज्य सरकारों पर फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि केंद्र ने जो कुछ भी कहा है कि वह राज्य सरकारों के दावों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य सरकार ने नहीं माना कि उसकी भौगोलिक सीमा में एक भी व्यक्ति की मौत भूख के कारण हुई है।
  सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने एजी के इस बयान पर प्रतिक्रिया दी। पीठ ने कहा, 'भूख और कुपोषण का एक-दूसरे से प्रगाढ़ रिश्ता है। जैसे भी हो, भूख मिटानी ही पड़ती है। सरकार का दायित्व है कि वो भूख से बिलबिलाती आबादी को भोजन उपलब्ध कराए। इसके लिए ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह पर कम्यूनिटी किचन खोले जाने की जरूरत है।'  प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस बात पर क्षोभ प्रकट किया कि चुनावों के वक्त तो ज्यादातर राजनीतिक दल तरह-तरह की मुफ्त और कल्याणकारी योजनाओं का लालच देते हैं। अगर वो हर जगह कम्यूनिटी किचन बनाने की भी बात करने लगें तो जनता इसे बहुत पसंद करेगी। बेंच ने कहा, 'वे (राजनीतिक दल) कई तरह की मुफ्त योजनाओं का वादा कर रहे हैं। राज्य सरकारें कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं। मुफ्त में कुछ देने के बजाय अगर वो (राजनीतिक दल और राज्य सरकारें) भूखों को भोजन देने की योजना लाएं तो वह भी बहुत लोकप्रिय हो जाएगा। चीफ जस्टिस ने विभिन्न राज्यों की ओर से पेश हलफनामों को पढ़ते हुए एजी वेणुगोपाल से कहा कि राज्य सरकारें कम्यूनिटी किचन खोलने को इच्छुक हैं, वो दूरदराज के इलाकों में ऐसा करने को तैयार हैं, बशर्ते केंद्र सरकार अनाज के मौजूदा कोटा को 2 फीसदी बढ़ाकर किचन तैयार करने और उसमें जरूरी संख्या में लोगों को रखने के लिए आर्थिक मदद कर दे। इस पर वेणुगोपाल ने कहा कहा कि केंद्र सरकार अनाज का कोटा 2फीसदी बढ़ाने पर तो विचार कर सकती है, लेकिन वह आर्थिक सहायता करने में सक्षम नहीं है। उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार सामाजिक कल्याण की 131 योजनाएं चलाती हैं और जरूरतमंदों की मदद के लिए हर वर्ष लाखों करोड़ रुपये खर्च करती है। इसलिए कम्यूनिटी किचन पर जो अतिरिक्त खर्च आएगा, उसे राज्य सरकारों को अपने संसाधनों से ही उठाना होगा और वो चाहें तो अतिरिक्त टैक्स लगाकर धन इकट्ठा कर सकती हैं। सीजेआई ने एजी को केंद्र सरकार की राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट की याद दिलाते हुए कहा कि करीब 26 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं जबकि कुपोषित बच्चियों का प्रतिशत थोड़ा ज्यादा 30 फीसदी है। उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय सामुदायिक रसोई योजना जैसी कोई व्यापक व्यवस्था करने में कोर्ट को परेशानी महसूस हो रही है क्योंकि अलग-अलग इलाकों के भोजन की आदतें बिल्कुल भिन्न हैं। खाना बनाकर भूखों का पेट भरना कठिन कार्य है। इसके लिए पूरी विशेषज्ञता की दरकार होगी। एजी ने कहा कि जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक सरकारी संस्थाएं यानी पंचायतें कम्यूनिटी किचन चलाने के लिहाज से सर्वोत्तम साबित होंगी क्योंकि उन्हें पता है कि किन खास इलाकों में कुपोषण की समस्या है। तब सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुझाव दिया कि सरकार इस्कॉन के अक्षय पात्र स्कीम के तौर-तरीकों को भी समझे कि आखिर वह कई राज्यों में गरीब बच्चों को मुफ्त भोजन कैसे मुहैया कराता है। जब याचिकाकर्ता के वकील अशिमा मंडला ने एक व्यापक योजना तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति की जरूरत बताई तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह नीतिगत मुद्दों में उलझना नहीं चाहता है बल्कि उसका फोकस भूखों को तुरंत राहत देने पर है। वकील अशिमा ने कहा था कि विशेषज्ञ समिति के गठन से भूख से होने वाली मौतों की पहचान आसान हो जाएगी और फिर राहत देने के वित्तीय ढांचा भी तैयार हो सकेगा। पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वो दो हफ्तों में कुपोषण और भूख से हो रही मौतों के सारे आंकड़े मुहैया करें और अन्य जरूरी जानकारियों के साथ यह भी बताएं कि किन-किन इलाकों में यह समस्या बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें अपने हलफनामे अटॉर्नी जनरल को दें ताकि इनके जरिए केंद्र सरकार के अधिकारी अगले 10 दिनों में योजना की रूपरेखा तैयार कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तीन हफ्ते बाद फिर से सुनवाई करेगा।
 

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