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अपर्णा बनेंगी अखिलेश को घेरने का अचूक हथियार

अपर्णा बनेंगी अखिलेश को घेरने का अचूक हथियार

लखनऊ । मुलायम सिंह यादव के सियासी घराने की बहू अपर्णा यादव को पाले में लाकर भारतीय जनता पार्टी ने न केवल हाल के दिनों में अपने कुनबे में हुई बगावत का जवाब देने की कोशिश की है बल्कि मुलायम के कुनबे में फूट का संदेश देकर पार्टी मिशन-2022 में बढ़त लेने की कोशिश कर रही है। अतीत गवाह है कि जब-जब किसी सियासी कुनबे में फूट पड़ी है, तब-तब उस कुनबे को कुछ न कुछ सियासी नुकसान उठाना ही पड़ा है। अब 10 मार्च को पता चल सकेगा कि भाजपा के इस दांव का कितना और किसके पक्ष में सियासी लाभ हुआ। परिवारवाद के नाम पर सपा को घेरने वाली भाजपा अब इसी परिवार के सदस्य के जरिए अखिलेश यादव पर निशाना साधेगी। मुलायम परिवार की बहू अपर्णा यादव को अपने पाले में खींचकर भाजपा ने बुधवार को सपा को झटका दे दिया। भाजपा जानती है कि वोटों के गुणा-गणित के लिए अपर्णा के आने के बहुत मायने भले न हों लेकिन इस दांव के जरिए भाजपा को सपा और अखिलेश पर निशाना साधने के लिए एक अचूक हथियार जरूर मिल गया है। मुलायम परिवार की बहू बनने से पहले अपर्णा यादव का नाम अपर्णा बिष्ट था। उनके पिता पेशे से पत्रकार हैं। करीब 32 साल की अपर्णा ने वर्ष 2011 में मुलायम सिंह यादव के बेटे प्रतीक यादव से शादी की थी। संगीत और समाजसेवा में रुचि रखने वाली अपर्णा की राजनीति में भी गहरी रुचि है। अपर्णा अपने बयानों और सक्रियता से अक्सर चर्चाओं में रहती हैं। वह एक एनजीओ भी चलाती हैं जो गौसेवा के साथ ही आवारा कुत्तों और भैंसों को लेकर भी काम करता है। अपर्णा राजनैतिक हलकों में चर्चा में तब आईं जब उन्होंने मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक संग विवाह किया। दोनों साथ पढ़ते थे और तभी एक दूसरे के करीब आए। शुरुआत से ही उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं थीं। इसने वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ज्यादा जोर पकड़ा। पिछला विधानसभा चुनाव उन्होंने लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से सपा प्रत्याशी के रूप में लड़ा, हालांकि वह जीत नहीं पाई थीं। दरअसल, अपर्णा को साथ लेकर भाजपा ने अपनी पार्टी से मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी सहित कई विधायकों के पाला बदलने का पलटवार किया है। दरअसल स्वामी सहित 14 विधायकों के पाला बदलने के बाद से सियासी हलके में समाजवादी पार्टी द्वारा बाजी मार लेने की अवधारणा बनती जा रही थी। भाजपा को इन नेताओं के जाने से ज्यादा चिंता इस परसेप्शन यानि अवधारणा को लेकर थी। तभी से पार्टी ने इस मुहिम को रफ्तार दे दी। अपर्णा की चुनाव लड़ने की ख्वाहिश भी थी और पीएम मोदी और सीएम योगी की वह प्रशंसक भी रही हैं, सो पार्टी ने समाजवादी परिवार को उसी के सदस्य के जरिए करारा जवाब देने की तैयारी कर ली। अपर्णा यादव ने वर्ष 2014 के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसलों को लेकर उनकी तारीफ शुरू कर दी थी। ऐसा उन्होंने कई बार किया। फिर मुख्यमंत्री योगी की भी उन्होंने तारीफ की। वह लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलती भी रही हैं। योगी उनकी गौशाला भी गए थे। उन्होंने सपा को सबसे ज्यादा असहज तब किया जब राममंदिर के चंदे को लेकर अखिलेश भाजपा को घेर रहे थे। उन्हें चंदाजीवी बता रहे थे और तब अपर्णा ने मंदिर के लिए 11 लाख रुपये चंदा दिया था। साथ ही कहा था कि परिवार के फैसलों के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं।
 

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