नई दिल्ली । समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने करहल सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। समाजवादी पार्टी के लिए सबसे मुफीद इस सीट पर 2002 के बाद से लगातार सपा का कब्जा है। चार बार के वर्तमान विधायक सोबरन सिंह के प्रस्ताव पर सपा ने गुरुवार को यह फैसला लिया। सोबरन ने कहा कि अखिलेश बस नामांकन कर जाएं, उन्हें रिकार्ड मतों से जिताकर भेजेंगे। करहल को लेकर सपा के इस आत्मविश्वास की कई वजहें हैं। आइए उनमें से कुछ पर एक नज़र डालें- करहल सीट समाजवादी पार्टी के गठन से उसका गढ़ रही है। तीन दशक से पार्टी का सीट पर कब्जा है। अपवादस्वरूप 2002 के चुनाव में सोबरन सिंह यादव भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते लेकिन कुछ माह बाद वह भी समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन गए। तब से लगातार यह सीट सपा के कब्जे में ही है। करहल सीट सपाई दबदबे के साथ जातीय समीकरण के लिहाज से भी बेहद मुफीद है, क्योंकि कुल मतदाताओं के लगभग 40 फीसदी यादव है। बुधवार को चार बार के विधायक सोबरन सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से आग्रह किया था कि वह करहल सीट से चुनाव लड़ें। गुरुवार को पार्टी की ओर से इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी गई। वर्तमान विधायक सोबरन सिंह पार्टी के इस निर्णय से फूले नहीं समा रहे। अखिलेश केवल नामांकन करके यहां से चले जाएं। हम उनको रिकार्ड मतों से जिताकर लखनऊ भेजेंगे। यूपी में सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी और क्षेत्र का विकास होगा। करहल के ऐतिहासिक मोटामल मंदिर से महाराजा पृथ्वीराज चौहान का जुड़ाव रहा है। पृथ्वीराज चौहान कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से प्रेम करते थे। कन्नौज के राजा जयचंद ने जब अपनी बेटी संयोगिता के विवाह लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो पृथ्वीराज को छोड़कर देश के तमाम राजा बुलाए गए थे। निमंत्रण न मिलने से नाराज महाराजा पृथ्वीराज ने अपने प्रेम को पाने के लिए कन्नौज पर चढ़ाई कर दी। पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर स्थल से संयोगिता को लेकर दिल्ली ले जाने लगे तब जयचंद की सेना ने पृथ्वीराज को घेर लिया। पृथ्वीराज के सेनापति मोटामल ने उन्हें और संयोगिता को दिल्ली के लिए रवाना कर दिया था। भीषण युद्व में मोटामल शहीद हो गए थे। मोटामल की मौत से दुखी पृथ्वीराज ने मोटामल की स्मृति में करहल में मंदिर बनवाया था। तब करहल का नाम करील था। पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव लंबे समय से लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लिहाजा हर जाति व वर्ग का समर्थन उन्हें हासिल है। कोई भी मुद्दा या लहर भी इस सीट को प्रभावित नहीं कर सका है। सपा मुखिया का करीबी जुड़ाव भी करहल से है।
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सपा का मजबूत किला बन गई मैनपुरी की ये सीट