YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

रीजनल नार्थ

पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते कांग्रेस ने किशोर उपाध्याय को 6 साल के लिए पार्टी से निकाला -थाम सकते हैं भाजपा का दामन

पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते कांग्रेस ने किशोर उपाध्याय को 6 साल के लिए पार्टी से निकाला -थाम सकते हैं भाजपा का दामन

देहरादून  उत्तराखंड में 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले के कांग्रेस ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। खबरों के मुताबिक वह भाजपा का दामन थाम सकते हैं। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के आज भाजपा में शामिल होने की संभावना है। सूत्रों के मुताबिक उपाध्याय टिहरी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। इससे पहले, कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की तीसरी सूची जारी की, जिसमें उपाध्याय का नाम नहीं था। इससे उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें और तेज हो गईं।
उपाध्याय के करीबी सूत्रों ने बताया कि वह पार्टी के सभी पदों से निलंबन रद्द करना चाहते थे। इस बात से उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को भी अवगत करा दिया था। उपाध्याय को हाल ही में अनुशासनात्मक कार्रवाई के रूप में पार्टी के सभी पदों से हटा दिया गया था। चुनाव से कुछ हफ्ते पहले राज्य में घटनाओं के एक बड़े मोड़ में कांग्रेस ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत की सीट बदल दी है। अब वह रामनगर के बजाय लालकुवा से चुनाव लड़ेंगे। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने 'एक सीट, एक परिवार' की अपनी नीति को धता बताते हुए हरिद्वार ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र से हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत को टिकट दिया है।
कांग्रेस को सबसे ज्यादा चिंता उत्तराखंड को लेकर है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ती जा रही है। चुनाव के बीच यह अच्छा संकेत नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के टिकट को लेकर भी स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। कई दूसरी सीटों पर भी नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं। प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि पार्टी ने नाराजगी को फौरन खत्म नहीं किया, तो लड़ाई और मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच करीब 13 फीसदी वोट का अंतर था। जबकि 2012 में दोनों पार्टियां लगभग बराबर थी। ऐसे में एकजुट कांग्रेस के बगैर 13 फीसदी वोट के अंतर को पार कर जीत की दहलीज तक पहुंचना आसान नहीं है।
 

Related Posts