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परीक्षाओं के मकडज़ाल में फंसकर फडफ़ड़ा रहे हैं बेरोजगार - कोचिंग एवं परीक्षा के नाम पर लूट

परीक्षाओं के मकडज़ाल में फंसकर फडफ़ड़ा रहे हैं बेरोजगार - कोचिंग एवं परीक्षा के नाम पर लूट

नई दिल्ली । बेरोजगार युवा-युवतियों का गुस्सा अब सड़क पर दिखने लगा है। बेरोजगारों का बगावती तेवर उग्र रूप से देश के सभी हिस्सों में दिखने लगा है। 25 से 35 वर्ष के युवाओं का गुस्सा जिस तरह से सामने आ रहा है। सही तरीके से समाधान नहीं होने पर स्थिति विस्फोटक हो सकती है। स्नातक एवं परास्नातक युवा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग करते हैं। कोचिंग में लाखों रुपया खर्च करने के बाद भी पिछले वर्षों में समय पर परीक्षायें ना होना, पेपर लीक होने से परीक्षाएं निरस्त होने, परीक्षाओं में पास कराने एवं नौकरी में चयनित कराने के लिए तथाकथित दलालों को लूटमारी के बाद भी पिछले वर्षों में नौकरियां नहीं मिलने से युवा आक्रोशित है। परीक्षा शुल्क के नाम पर फीस, दस्तावेजों एवं परीक्षा देने दूर-दराज के परीक्षा केंद्रों में पहुंचने रुकने एवं ठहरने में हजारो रुपया हर बार खर्च होने के बाद भी जब कोई परिणाम नहीं निकलता है। इससे बेरोजगार युवाओं में भारी आक्रोश है।
परीक्षा शुल्क के नाम पर कमाई
जिन संस्थाओं द्वारा नौकरी एवं प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन कराया जाता है। उसमें भारी भरकम शुल्क वसूल किया जाता है। उसके बाद पेपर लीक होने, परीक्षा परिणाम कई माह नहीं आने, परीक्षा परिणाम आ भी जाए तो चयनित युवाओं का नौकरी में ज्वाइनिंग नहीं मिलने से अराजकता की स्थिति बन गई है। जिससे युवा बेरोजगार आक्रोशित होकर, अपराध नशे एवं प्रदर्शन के लिए कुछ भी जोखिम उठाने तैयार है।
युवाओं में हताशा
25 से 35 वर्ष के युवक-युवती कई वर्ष की पढ़ाई कोचिंग एवं विभिन्न परीक्षाओं को देने के बाद नौकरी नहीं मिल रही है। घर में माता-पिता आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। वह बच्चों के ऊपर नौकरी करने अथवा रोजगार के लिए दबाव बनाते हैं। दोनों ही स्थानों पर असफल होने पर लाखों युवा भारी हताशा में जीवन जीने विवश हो रहे हैं।
शादी भी नहीं
जिन युवाओं के पास नौकरी और रोजगार नहीं है। उनकी शादी भी नहीं हो रही है। परिवार के आर्थिक संकट से युवाओं की जरूरतें पूरी नहीं हो रही है। हताशा में युवाओं में बढ़ी संख्या में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है। देश के हर जिले में रोजाना बेरोजगार युवाओं की आत्महत्या के समाचार सुनने को मिलते हैं। इसके बाद भी केंद्र एवं राज्य सरकारों का मौन बेरोजगारों को बगावती बना रहा है।
निजीकरण से युवाओं में आक्रोश
सरकारी विभागों, बैंकों, सार्वजनिक उपक्रमों, रेलवे, टेलीकाम क्षेत्र में जिस तरह सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। सरकारी विभागों में प्रत्येक राज्य की सरकारों एवं केंद्र के विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं। उन पर नियुक्ति नहीं होने तथा निजीकरण के कारण युवाओं में निराशा और हताशा फैल गई है। वह अपने भविष्य को अंधकारमय मान रहे हैं। जिसके कारण स्थिति विस्फोटक हो रही है।
सरकारों के वादे और असंवेदनशीलता
राज्य केंद्र सरकारें युवाओं को नौकरी देने के बड़े वादे करती हैं। विभिन्न परीक्षाएं आयोजित कराती हैं। उसके बाद भी कई वर्षों तक खाली पदों का नहीं भरा जाना युवाओं की सबसे पीड़ा है। सरकारें और राजनीतिक दल आश्वासन तो देते हैं किन्तु कई वर्षों तक युवा बेरोजगार रहते हुए किस तरह अपना जीवन-यापन करे, इसको लेकर सरकारों का मौन उनकी असंवेदनशीलता का परिचायक है।

- बेरोजगारी भत्ता दें
पढ़े लिखे युवाओं को इस महंगाई में जब 10 हजार रुपया का बेरोजगारी भत्ता मिलेगा तभी वह अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा कर पाएगा। निजी क्षेत्र में उसके लिए 10 हजार की नौकरी नहीं है। रोजगार के नाम पर युवा और कर्जदार हो गया है। ऐसी स्थिति में युवा के सामने भविष्य पूरी तरह अंधकारमय हो गया है। वहीं सरकारें रोज बड़े-बड़े वादे कर जो सपना दिखाती है। उसे अब बेरोजगार युवा समझ चुका है। सरकारों के वादों एवं परीक्षाओं के मकडज़ाल में फंसकर युवा फडफ़ड़ा रहा है। भूख और जिल्लत की आग से युवा जल रहा है।
 

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