लंदन । मंगल ग्रह पर 60 करोड़ सालों तक लगातार उल्कापिंडों की बारिश होती रही है। न्यू कर्टन यूनिवर्सिटी के शोध ने इस बात की पुष्टि की है जिन क्षुद्रग्रह के टकराव से मंगल ग्रह पर इम्पैक्ट क्रेटर बने थे, वे 60 करोड़ साल तक लगातार और नियमित रूप से टकराते रहे थे। अध्ययन में मंगल ग्रह के 500 से ज्यादा विशाल क्रेटर का अध्ययन किया।
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने एक क्रेटर डिटेक्टर एल्गॉरिदम बनाया जो एक उच्च विभेदन तस्वीर में से स्वतः ही दिखाई देने वाले इम्पैक्ट क्रेटरों की गनती कर लेता है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले के अध्ययनों ने सुझाया है कि क्षुद्रग्रहों के टकराव की आवृति में तेजी आती रही थी। लेकिन शोधक्रताओं ने पाया कि टकरावों की गति में लाखों सालों तक विविधता नहीं आई थी। कर्टन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंसेस के प्रमुख शोधकर्ता डॉ एंथोनी लैगेन ने बताया कि किसी भी ग्रह की सतह पर हुए इम्पैक्ट क्रेटर की संख्या की गणना करना ही भौगोलिक घटनाओं की सही तारीख का आंकलन करने का तरीका हो सकता है। इसी तरह से दूसरी भौगोलिक संरचनाओं , जैसे घाटियां, नदियां, ज्वालामुखी आदि के बारे में भी बताया जा सकता है। इस तरीके से यह भी पता चल सकता है कि भविष्य में कब और कितने बड़े टकराव होंगे।
पृथ्वी पर प्लेट टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण हमारे ग्रह के इतिहास की जानकारी मिट गई थी। लेकिन हमारे सौरमंडल के दूसरे ग्रहों, जिनमें इन घटनाओं की संकेत आज भी संरक्षित हैं, का अध्ययन करने से हमें अपने ग्रह के विकास और उसके इतिहास की जानकारी मिल सकती है।डॉ लैगेन ने बताया कि क्रेटर की पहचान करने वाला एल्गॉरिदम हमें इम्पैक्ट क्रेटर के निर्माण को समझने के लिए पूरी जानकारी देता है। इसमें उनके आकार, मात्रा, और उनके निर्माण कारक रहे क्षुद्रग्रह के टकराव के समय और आवृत्ति की जानकारी भी शामिल है। इससे पहले के अध्ययन सुझाते हैं कि अवशेषों के बनने के कारण क्षुद्रग्रह के टकराव की आवृतियां बढ़ गई थीं। इस बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ लैगेन ने बताया कि जब विशाल पिंड एकदूसरे से टकराते हैं, वे टुकड़ों में बंट जाते हैं या फिर अवशेषों में बदल जाते हैं। जिसे इम्पैक्ट क्रेटर की निर्माण का प्रभाव के रूप में देखा जाता है। अध्ययन दर्शाता है कि ऐसा होना मुश्किल है कि इम्पैक्ट टकरावों से अवशेष बने होंगे।
शोधकर्ताओं का कहना है क इसे चंद्रमा सहित दूसरे ग्रहों पर भी लागू किया जा सकता है। ज्ञात हो कि इस बात पर कई वैज्ञानिक अध्ययनों ने इशारा किया है कि पृथ्वी और सौरमंडल के इतिहास में एक समय ऐसा था जब ग्रहों पर भारी संख्या में क्षुद्रग्रहों या उलकापिंडों की बारिश हुई थी। एक मत के अनुसार पृथ्वी पर इतनी भारी मात्रा में पानी भी उल्कापिंडों के जरिए आया था। इसी तरह यह भी मत रहा है कि पृथ्वी की तरह मंगल ग्रह पर ही उल्कापिंड भारी मात्रा गिरे।
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मंगल से 60 करोड़ साल तक लगातार टकराते रहे थे क्षुद्रग्रह - न्यू कर्टन यूनिवर्सिटी के शोध ने की इस बात की पुष्टि