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 देश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना जनता का ही नुकसान

 देश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना जनता का ही नुकसान

नई दिल्ली । हमारा देश बहुत विशाल है। देश के हर राज्य की अलग-अलग समस्याएं हैं। अलग-अलग राज्य के लोगों की सरकारों से भिन्न-भिन्न अपेक्षाएं होती हैं। उनकी कुछ समस्याओं का निदान सरकारें कर पाती हैं और कुछ समस्याएं लंबित भी पड़ी रहती हैं। गरीबी और बेरोजगारी हमारे देश की प्रमुख समस्याएं हैं। अभी कोई भी सरकार इनका संपूर्ण निदान नहीं कर पाई है। कोरोना के कारण इधर कुछ वर्षों में ये समस्याएं और विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। इनकी वजह से लोगों के मन में हताशा और निराशा उत्पन्न हो रही हैं। लोग अपनी बातें सरकारों तक पहुंचाने के लिए कई बार धरना, प्रदर्शन और आंदोलन का रास्ता अख्तियार करते हैं। जब इससे भी उनकी समस्या का हल नहीं होता है तो वे हिंसक हो जाते हैं और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। पिछले दिनों आरआरबी-एनटीपीसी परीक्षा से जुड़ी कुछ मांगों को मनवाने के लिए बिहार में छात्रों ने सार्वजनिक संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाया। उन्होंने कई जगह रेल की पटरियों को उखाड़ दिया और ट्रेन की बोगियों को आग के हवाले कर दिया। सिर्फ नवादा जिले में ही तीन करोड़ रुपये की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। इसी तरह किसान आंदोलन में किसानों ने दो साल तक यातायात में अवरोध उत्पन्न कर देश का भारी नुकसान किया। नई दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में किसानों के विरोध के कारण भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को 2731.32 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। दोनों तो मात्र उदाहरणार्थ हैं। देश के सभी हिस्सों में सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किए जाने की बातें सुनाई देती ही रहती हैं। हिंसा और तोड़फोड़ कर सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का दस्तूर बन गया है। सवाल है कि यह नुकसान किसका हो रहा है? देश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना देश की जनता का ही नुकसान है, क्योंकि आम लोगों के दिए कर से ही सरकार इन चीजों का निर्माण करती है। देश में जितनी भी सार्वजनिक संपत्तियां हैं वे जनता के पैसों से बनती हैं। जाहिर है सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान स्वयं जनता का ही नुकसान है। सरकार से मतभेद है या अपनी समस्या सरकार के सामने रखनी है तो यह काम शांतिपूर्ण तरीके से भी हो सकता है।

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