नई दिल्ली। पंजाब में 20 फरवरी को वोटिंग होनी है। इससे पहले सभी राजनीतिक दल अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं। हालांकि पंजाब के सियासी हालात अब पहले जैसे नहीं रहे। आम आदमी पार्टी की मजबूत स्थिति के बाद अब यहां केवल दो पार्टियों का गेम नहीं रह गया है बल्कि कई अन्य दल भी उभरकर आगे आ रहे हैं। 2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने राज्य में एंट्री ली थी और 117 सीटों वाली विधानसभा में 20 सीटों पर कब्जा कर लिया था। वहीं 10 साल पर सत्ता पर काबिज अकालियों के खिलाफ कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई में कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। लेकिन इस बार स्थितियां अलग हैं। इस बार कैप्टन अमरिंद सिंह अपनी पार्टी को लेकर भाजपा के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इस चुनाव में उनके साढ़े चार साल के काम को गिनाने वाला कोई नहीं है बल्कि चरणजीत सिंह चन्नी के 111 दिनों के कामकाज को गिनाया जा रहा है। पंजाब में इस बार भाजपा और शिरोमणि अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। अकाली दल ने किसान आंदोलन के समय से ही भाजपा से दुरी बना ली ताकि किसानों का समर्थन उसे राज्य में हासिल हो सके। हालांकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भी किसानों के समर्थन में और केंद्र सरकार के खिलाफ खड़े रहे। उधर किसानों की पार्टी ने खुद ही चुनाव मे उतरने का फैसला कर लिया है। इस तरह कह सकते हैं कि पंजाब में त्रिकोणीय मुकाबला है। अच्छे अच्छे सियासी जानकारी भी अभी स्पष्ट अनुमान नहीं लगा सकते कि पलड़ा किसका भारी होने वाला है। पंजाब में आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल का नाम लेकर वोट मांग रही है। भगवंत मान ने कहा कि अगर यहां आम आदमी पार्टी की सरकार बनती है तो दिल्ली की तरह यहां भी नीतियों कोलागू किया जाएगा। आप अपने घोषणापत्र में बिजली बिल माफी का ऐलान कर चुकी है। साथ ही कोरोना के समय में स्कूलों के बंद होने का मामला हो या फिर ड्रग सिंडिकेट का, आम आदमी पार्टी इन समस्याओं के समाधान का दावा कर रही है और दिल्ली का उदाहरण देकर शिक्षा व्यवस्था सुधारने का वादा कर रही है। पंजाब में कई जगहों पर लोगों का रुझान अकाली दल औऱ कांग्रेस से इतर आम आदमी पार्टी की ओर देखने को मिला है। दिल्ली मॉडल के दावे पर भी लोगों को यकीन है। उनका कहना है कि अगर दिल्ली में वे अच्छा काम न करते तो दोबारा इतने बहुमत से सरकार कैसे बना पाते।
रीजनल नार्थ
पंजाब में अब अकाली दल कांग्रेस के लिए आसान नहीं रास्ता आप ने बदल डाले सियासी समीकरण