नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक मुस्लिम विधवा और उसकी बेटी को पैतृक संपत्ति से बेदखल कर दिया है। यह केस आम नहीं है, क्योंकि यह कानूनी लड़ाई 45 साल से चल रही थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत यह फैसला किया गया, जिसमें उत्तराधिकार केवल उन वंशजों को दिया गया है, जो अपने बुजुर्ग की मौत के समय रहे हों। इस तरह से 45 साल पुराना मामला खत्म हो गया।
यह मामला 1977 में ट्रायल कोर्ट में पहुंचा था। यह केस मोहिउद्दीन पाशा की संपत्तियों के बंटवारे को लेकर था। जस्टिस एल एन राव और बी आर गवई की बेंच ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत स्वीकृत बंटवारे की योजना पर मुहर लगा दी। इसके तहत पाशा के बड़े बेटे रहमान बरीद की विधवा और बेटी को कोई हिस्सा नहीं दिया क्योंकि रहमान की मौत पाशा से पहले हो गई थी।
हिंदू लॉ के विपरीत, अगर बिना वसीयत किए किसी मुस्लिम व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो उस समय रहने वाले उत्तराधिकारियों को ही संपत्ति में हिस्सेदारी मिलती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, जन्म के अधिकार को मान्यता नहीं दी गई है। उत्तराधिकार का अधिकार बुजुर्ग या पूर्वज की मौत के समय अस्तित्व में आता है और अगर पूर्वज जीवित हैं तो संपत्ति में किसी तरह के हक के लिए उत्तराधिकारी का हक नहीं बनता है। यह उन कई उदाहरणों से एक है, जो समान नागरिक संहिता के मामले को मजबूत करेगा जिससे बिना किसी लैंगिक भेदभाव के वंशजों में पैतृक संपत्ति का समान बंटवारा हो सके।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, पैतृक संपत्ति में बेटी, बेटे की तुलना में आधे की हकदार है। पाशा ने नूरबी से शादी की थी और उनके दो बेटे रहमान और असगर हुए। नूरबी की मौत 1944 में हो गई। इसके बाद पाशा ने मजांबी से शादी की और उनसे दो बेटे और तीन बेटियां हुईं। पहली पत्नी से हुए बेटे रहमान ने रहमथुनिसा से शादी की और उन्हें एक बेटी नूरजहां हुई। रहमान 1945 में गुजर गए जबकि उनके पिता पाशी की मौत 1964 में हुई।
रहमान की विधवा और मजांबी और उनके बच्चों ने पाशा की संपत्ति में हक मांगा। कोलार कोर्ट ने कुछ हिस्सा नूरजहां को दिया और बाकी मजांबी, उनके बच्चों और असगर में बांट दिया। लेकिन अपील पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत रहमथुनिसा और नूरजहां को संपत्ति से बेदखल कर दिया। यह ऐसा वाकया है, जहां समान नागरिक संहिता दो महिलाओं की मदद कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है। इसके तहत मजांबी को पाशा की संपत्ति का 1/8वां हिस्सा मिला, असगर और मजांबी के दोनों बेटों में हर एक को 7/36वां हिस्सा मिला और तीन बेटियों को 7/72वां हिस्सा मिला है।
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45 साल चली कानूनी लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला व उसकी बेटी को संपत्ति से बेदखल किया