जीवन परिवर्तनों की लड़ी है। कई अलग-अलग व्यवहार के लोगों से संपर्क होता है। कुछ समय पहले एक ऐसी महिला से मुलाक़ात हुई जो व्यवहारिकता की मूरत थी, जिसका नाम सुजाता था। सुजाता के अनुसार उसका व्यवहार उत्कृष्ट कोटि का था। सभी से बहुत मीठा-मीठा बोलना, झूठी तारीफ, सामने वाले की हाँ में हाँ मिलाना और ऐसा व्यवहार सिद्ध करना जिसमें आपको एहसास हो की वह तो आपकी सबसे बड़ी शुभंचिंतक है। जब सुजाता से अत्यधिक मेल-मिलाप हुआ तब ज्ञात हुआ की यह व्यवहार केवल एक परिवार तक ही सीमित था। दूसरे ही समय पिछले परिवार की कमियाँ इस परिवार में उजागर होने लगती थी और नया परिवार भी खुलकर रसास्वादन करता था। पर शायद इस बात का अंदाजा नहीं था की जिसके साथ मिलकर रसास्वादन हो रहा है वह अगले परिवार में जाकर आपकी बुराई को परोसेगा।
इन सभी क्रियाकलापों में सुजाता की अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ और बच्चों की देखरेख नगण्य हो चुकी थी। यदि आप अचानक से सुजाता से किसी अन्य महिला का जिक्र करेंगे की क्या आप उनसे बातचीत करते है तब आपको तपाक से उत्तर मिलेगा की उनसे तो आए दिन फोन पर बात होती रहती है। सुजाता से वार्तालाप की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी की सामने वाले के जीवन में क्या हलचल हो रही है इसकी पूरी जानकारी आपको प्राप्त हो जाएगी। सुजाता की सामने खूब प्रशंसा होती थी और तारीफ़ों के पुल बाँधें जाते थे की बड़ी व्यवहारिक महिला है। पर असल जिंदगी में सुजाता अच्छी और ज्ञानपरक जानकारी बटोरने के बजाए इधर-उधर की बातों पर ही केन्द्रित रहती थी। घंटों-घंटो अपने बच्चों को अकेले ही बाहर घूमने देना, यह भी ध्यान नहीं देना की बच्चे बाहर क्या कर रहे है। कई बार बच्चे सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ने-फोड़ने का कार्य भी करते थे। कई लोग सुजाता के सामने उन्हें नटखट की संज्ञा देकर पीठ पीछे बच्चों की खिल्ली भी उड़ाया करते थे। क्या सच में सब कुछ अनदेखा करके झूठी प्रशंसा की चाह करना उचित है।
इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है की पूर्ण व्यवहारिक होना उचित है पर व्यवहार निभाकर लोगों की कमियों और अतिरिक्त मूल्यांकन का प्रचार-प्रसार उचित नहीं है। सभी के लिए जरूरत से ज्यादा अच्छे साबित होने का मतलब है झूठे दिखावे को प्रत्यक्ष करना। सत्य है की व्यवहारिक जरूर बनें पर दूसरे के जीवन के मूल्यांकन के लिए नहीं बल्कि उनके दु:खों को आत्मसात करने के लिए और सहयोग प्रदान करने के लिए। लोगों के कमेंट तो दूसरे व्यक्ति से मिलते ही बदल जाते है इसलिए कभी भी झूठी प्रशंसा की चाह न करें।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
आर्टिकल
“झूठी प्रशंसा की चाह (लघुकथा)”