सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) ने अपने काफिले के मार्ग पर पूरी सावधानी बरती थी, लेकिन जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग के एक हिस्से पर सिविलियन वाहन चलाने की अनुमति देना घातक साबित हुआ। सीआरपीएफ ने ग्रेनेड हमले या अचानक होने वाली फायरिंग को लेकर काफी सतर्कता बरती थी और इस मार्ग पर रवाना होने से पहले इसकी पूरी तरह जांच की थी। सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर जनरल (ऑपरेशन्स) कश्मीर जुल्फिकार हसन ने कहा रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) ने गुरुवार सुबह पूरे रूट की चेकिंग की थी। उस रूट पर कहीं पर भी आईईडी नहीं पाया गया था और न ही इस बात की संभावना छोड़ी गई थी कि कोई जवानों के काफिले पर फायरिंग कर सके या ग्रेनेड फेंक सके। सीआरपीएफ अधिकारियों ने बताया कि जैश-ए-मोहम्मद का आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद कश्मीरी नागरिकों को दी गई आजादी का इस्तेमाल करते हुए एक सर्विस रोड से जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर आया।
पहले जब सुरक्षाबलों का काफिला चलता था, तब बीच में सिविलियन गाड़ियों को नहीं आने दिया जाता था, लेकिन इस बीच हालात ठीक हो रहे थे, तो काफिले के बीच में या आगे-पीछे सिविल गाड़ियों को भी चलने की अनुमति दे दी गई थी, जो खतरनाक साबित हुआ। सीआरपीएफ अधिकारी ने कहा स्थानीय नागरिक हमारी मूवमेंट से परेशानी न महसूस करें, इसलिए हमने उनकी गाड़ियों को काफिले के आस-पास चलने की छूट दे रखी थी। इस तरह से हमला करने का तरीका नया है और हैरान करने वाला भी है।
उन्होंने कहा सुरक्षाबल अब अपनी रणनीति में बदलाव करेंगे। गौरतलब है कि गुरुवार को आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के जिस काफिले पर हमला किया, वह जम्मू से श्रीनगर की ओर जा रहा था और इसमें 78 वाहनों में 2,547 जवान शामिल थे। इस आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो चुके हैं और लगभग 20 जवानों का अस्पताल में इलाज चल रहा है। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हुआ यह हमला आतंकी हमले की पहली वारदात नहीं है। एक साल पहले 15 फरवरी 2018 को भी आतंकियों ने पुलवामा के पंजगाम स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक कैंप पर हमला किया था। इस वारदात के दौरान आतंकियों ने सीआरपीएफ के शिविर पर हमला कर कैंप में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन जवानों की सतर्कता के कारण कामयाब नहीं हो सके थे।
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काफिले के बीच सिविलियन वाहनों के प्रवेश की अनुमति देने का भुगतना पड़ा खामियाजा