रुद्रपुर । औषधीय गुणों से भरपूर शक्तिवर्धक कीड़ा जड़ी अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि लैब में भी तैयार की जा सकेगी। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की इकाई जैव ऊर्जा रक्षा अनुसंधान संस्थान (डिबेर) ने लंबे समय तक शोध से मिली सफलताके बाद इसके व्यावसायिक रूप से उत्पादन की तैयारी कर ली है। उत्तराखंड, गुजरात व केरल की लैब में इसका उत्पादन किया जाएगा। 20 से 25 लाख रुपये किलो बिकने वाली कीड़ा जड़ी छह माह की बजाय दो माह में तैयार होगी।
प्रोटीन, विटामिन व पोषक तत्वों से भरपूर कीड़ाजड़ी का उपयोग विभिन्न दवाएं व शक्तिवर्धक उत्पाद बनाने में किया जाएगा। कीड़ा जड़ी को यारसा गांबू नाम से भी जानते हैं। उत्तराखंड में जनपद चमोली और पिथौरागढ़ के धारचूला व मुनस्यारी क्षेत्र में 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में कीड़ा जड़ी प्राकृतिक रूप से उगती है। यहां का तापमान माइनस पांच डिग्री से 10 डिग्री के आसपास रहता है।
करीब आठ महीने बर्फ से ढके रहने वाली इन इलाकों में प्राकृतिक भूरे रंग की कीड़ा जड़ी मई-जून में बर्फ पिघलने के बाद नजर आती है। इसकी लंबाई लगभग दो इंच होती है। विज्ञानियों की ओर से लैब में इसी तापमान को मेंटेन रखते हुए उगाई गई कीड़ा जड़ी गुलाबी रंग की होती है। इसकी लंबाई करीब पांच से सात सेंटीमीटर होती है। डिबेर के विज्ञानी डा। रंजीत सिंह ने बताया कि संस्थान की हल्द्वानी स्थित लैब में परीक्षण सफल हो चुका है। अब यह आसानी से तैयार हो रही है। यह जड़ी एक खास तरह के कीड़े के मरने पर उसमें जो फफूंद निकलती है, उससे तैयार होती है।
प्राकृतिक कीड़ा जड़ी के तैयार होने में करीब 180 दिन का समय लगता है, जबकि लैब में यह 60 दिनों में तैयार हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 15 से 20 लाख रुपये प्रति किलो तक है। उत्तराखंड भेषज संघ व वन विभाग ग्रामीणों से खरीद के लिए अधिकृत है। हालांकि जड़ी संग्रह करने वाले ग्रामीणों से अधिकांश नेपाली व स्थनीय ठेकेदार पहले ही इसे ऊंची कीमत देकर खरीद लेते हैं। जो अधिकांश चीन को सप्लाई होती है।
रीजनल नार्थ
डीआरडीओ ने लैब में विकसित की कीड़ाजड़ी, उत्तराखंड, गुजरात व केरल की लैब में किया जाएगा उत्पादन