मुम्बई । बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि लोकल ट्रेनों सहित सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए पूर्ण टीकाकरण अनिवार्य करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट को अपने स्वयं कार्य करने की शक्ति का विस्तार करना चाहिए और राज्य द्वारा जारी कई मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को रद्द कर देना चाहिए। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। आप (राज्य सरकार) इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सभी को टीका लगवाना चाहिए। व्यक्तिगत पसंद का कोई सवाल ही नहीं है। एक तरफ आप कहते हैं कि यह स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं है और दूसरी ओर आप ऐसी स्थिति बनाते हैं सभी को टीका लगवाना चाहिए।
अदालत ने कहा- हमें अधिसूचनाओं को रद्द कर देना चाहिए था
नाराज पीठ ने कहा, हमने इस जनहित याचिका के दायरे को चुनौती के तहत केवल तीन एसओपी तक सीमित करने में गलती की। हमें आगे बढ़कर 10 अगस्त, 2021 के बाद जारी सभी अधिसूचनाओं को रद्द कर देना चाहिए था। लेकिन हमें उम्मीद थी कि राज्य सरकार उचित निर्णय लेगी। यह अदालत के लिए एक सबक था। अदालत जुलाई और अगस्त 2021 में सरकार द्वारा जारी तीन एसओपी को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि केवल वे लोग जिन्हें कोविड रोधी टीके की दोनों खुराक मिली हो, वे शहर में स्थानीय ट्रेनों और सार्वजनिक परिवहन से यात्रा कर सकते हैं।
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सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए टीकाकरण की अनिवार्यता मौलिक अधिकारों का उल्लंघन - कोर्ट