युध्य हिंसाजन्य होता हैं और इसका मुख्य कारण अभिमान ,हठवादिता होता हैं .इसमें कोई भी पक्ष लाभ को प्राप्त नहीं करता हैं .युध्य विनाश का कारण हैं और उसकी विभीषिका में दुःख ही होता हैं .वर्तमान में रूस और यूक्रेन का युध्य का मुख्य कारण महत्वाकांछा के साथ अहम की लड़ाई हैं .इस समय जो समाचार आ रहे हैं वे अत्यंत भयावह हैं .
बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता और कारण कोई भी बहुत बड़ा नहीं होता हैं .मात्र गलतफहमी या संवादहीनता के कारण यह स्थिति निर्मित होती हैं .इस समय हठवादिता की जगह अनेकांतवाद की जरुरत हैं .यदि इस समय "ही" की जगह "भी "का उपयोग करेंगे तो शांति ,अमन स्थापित किया जा सकता हैं .
इसी भारत भूमि में एक युध्य अहिंसात्मक भी हुआ हैं .भगवान् ऋषभ देव के पुत्र भरत जिनके नाम से भारत देश का नाम पड़ा हैं वे चक्रवर्ती थे और वे अयोध्या के राजा थे और उनके भाई राजा बाहुबली जो पोदन पुर के राजा थे .उन्होंने भरत की अधीनता नहीं स्वीकारी इस कारण युध्य की घोषणा हुई .दोनों तरफ से सैन्य तैयारी हुई .उसी समय सम्राट भरत और सम्राट बाहुबली के सेनापतियों ने आपस में मंत्रणा कर यह निश्चय किया की यह युध्य दोनों भाइयों के बीच की हैं और इनके कारण लाखों सेना का मरण होगा इससे अच्छा हैं दोनों बलवान हैं इसीलिए दोनों आपस में युध्य करे.
इस प्रस्ताव से दोनों सम्राट के बीच दृष्टि युध्य ,जल युध्य और मल्ल युध्य हुआ और बाहुबली विजयी हुए और उन्हें जीतने के बाद आत्म ग्लानि हुई कि "इस भूमि और राज्य प्रासाद के पीछे मैं अपने भाई की मौत का भूखा हुआ .धिक्कार हैं धिक्कार हैं "और उन्होंने ने राज्य त्याग,आत्म धर्म को अंगीकार किया .जिसकी जीती जागती तस्वीर गोम्मटेश्वर बाहुबली में हैं .
आज विश्व में भुखमरी ,अशांति ,असंतुलन के साथ बेरोजगारी ,शिक्षा ,स्वास्थ्य आदि कितनी समस्याओं से मानव जूझ रहा हैं और विश्व के शक्तिशाली देश अपना प्रभुत्व जमाने कुछ भी करने को तैयार हैं .शक्तिशाली कोई कितना भी हो उसे अंत में दुनिया छोड़ कर जाना होगा .यमराज के पाश से कोई नहीं बचा हैं और न बच सकता हैं .
विश्व व्यापी संक्रमण से अभी उबर नहीं पा रहे हैं और इस युध्य जो दो महाशक्तियों का टकराव हैं ,एक दूसरे को नीचे दिखाने का उपक्रम हैं और इससे तबाही के अलावा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष में होने वाला नुक्सान कि भरपाई की जाना असंभव होती हैं .
इस जमी पर बड़ी से बड़ी हस्ती समां गयी .देश तो रहेंगे पर शासक बेमौत मारे जायेंगे .कोई भी अमर नहीं हैं .अमरता शांति ,दया प्रेम में होती हैं .
विश्व को आज अहिंसा की जरुरत हैं और वह आएँगी सद्भावना ,भाई चारे से .पूर्व में इतिहास साक्षी हैं .धरम और राजनीती के नाम पर हजारो युध्य हुए और अंत में बैठकर ही समाधान निकालना पड़ा और पड़ता हैं .भाई जैसा दोस्त नहीं और भाई जैसा दुश्मन नहीं .अभी भी कुछ नहीं हुआ वार्ता द्वारा समस्या का समाधान संभव हैं .
राजा राणा छत्रपति हाथिन के अवतार ,
मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )